
चलने की ज़िद ही तो किए बैठा है.. क्यों मान भी नहीं लेतीं तुम बताओ!! किसने कहा खिलखिलाना मना है.. क्यों भान नहीं दुख का जरा बताओ!! परिधि में रह सोचती जमाना तंग है.. उड़ने हैं पंख कभी इच्छा तो बताओ!! रहो हल्की सी मानो पंख उड़ता है.. क्यों धरा सी उठाए हो सारा बताओ!! कदम आगे बढ़ाए पीछे न देखना है.. सपनो की खातिर अब हाथ मिलाओ!! चलो अब साथ नई डगर पर चलते हैं.. तुम आगे बढ़ मुझसे हाथ तो मिलाओ!! चलने की ज़िद ही तो किए बैठा है.. क्यों मान भी नहीं लेतीं तुम बताओ!! नीता झा रायपुर, छत्तीसगढ़