जब शिक्षक नहीं गुरु होते थे - नीता झा।

वो गर्वित भारत दिखता था कभी.. जब शिक्षक नहीं गुरुजी होते थे।। सारी विद्या सानिध्य में उनके पा.. सहज ही जीवन सार्थक कर लेते।। वसंत पंचमी को ही नहीं गुरुवर.. प्रतिदिन प्रभाती में पूजे जाते थे।। सारे विषय थोड़े पर याद सदा रहते.. हिंदी लगती सरल बहुत जब।। संस्कृत की कक्षा लगती थी.. दादाजी की शिक्षा भी हमको।। गुरुजी से कम नहीं लगती थी.. होता बड़ा आदर गुरुजी का।। जब कभी वो घर आया करते.. सारा घर स्वागत में उनके फिर।। श्रद्धाभाव से नतमस्तक होता .. इतना मान आता ग्रन्थों से था।। वो प्रतिरूप होते सदाचरण के.. गर्वितभाल, विद्वता आलोकित।। मुखमण्डल सौम्य सूशोभित.. वाणी में विराजित माँ सरस्वती।। आभामंडल से छविदिव्य परिभाषित.. वेद, उपवेद, जीव, रसायन चाहे।। गणित या हो कोई विषय विशेष.. हर विधा का ज्ञान रखते मनीषी।। जो ना होता पता कभी जवाव.. गहन अध्ययन कर पता लगाते।। वो गर्वितभारत दिखता था कभी.. जब शिक्षक नहीं गुरुजी होते थे।। अंग्रेजी हो या हिंदी माध्यम या अन्य कोइभाषा सभी में अंग्रेजी शिक्षा का व्यापक प्रचार - प्रसार हुआ है। जिसके परिणाम स्वरूप आज की युवापीढ़ि ऐसे दो...