स्त्रियां - नीता झा।
चाहें स्त्रियां पैबस्त हो पातीं..
हमसफ़र के हर एक लम्हे में।।
जुड़ी, गूँथी ज्यों दूध शक्कर..
संयुक्त ठहाके में सुर ताल सी।।
घूमतीं संग लय और थाप सी..
विचरतीं उन्मुक्त पहाड़ियों में।।
जा लगतीं उत्तुंग शिखर पर..
सुर्ख गुलाब और खुशबू सी।।
बना लेतीं संग उनके रिश्ता..
बिना किसी जरूरत के यूँ ही।।
अपने बचपन की सहेली सी..
चाहें स्त्रियां पैबस्त हो पातीं।।
सिर्फ जिम्मेदारी में ही नहीं..
प्रत्येक आनन्दोत्सव में भी।।
याद करते हो तन्हाइयों में..
अपनी तमाम दुश्वारियों में।।
अच्छा लगता है याद करना..
सार्थक लगता खुद का होना।।
पर जानते हो कब होती है..
खुशी मेरी प्रिय द्विगुणित कहो।।
जब मेरी उपलब्धि पर हर्षाते..
प्रेम से पथप्रदर्शन करते हो।।
मेरी तरह तुम भी बेकल हो..
इंतज़ार करते हो घण्टों मेरा।।
नीता झा
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