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एक शाम साहित्य के नाम - नीता झा

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  यदि दशहरा सिर्फ पर्व होता विजय का.. बुराई पर अच्छाई की होती जीत का।। तो सिमट जाता सतयुग में ही कहीं.. अनेकों विजयी गाथाओं के मध्य ही।। भुला दिया जाता कुछ पीढ़ियों में ही.. पर्व है एकता की अदम्य शक्ति का।। आखरी छोर तक स्वयं पहुंचाने का.. सफल नेतृत्व के सुंदर उदाहरण का।। हां यदि दशहरा सिर्फ पर्व होता विजय का.. सदियों तक पूजा न जाता देवस्थानों में।। साक्षी न बनता भक्त और भगवान का.. अतुलित बल में छिपे कोमल मन का।। युद्ध, योद्धा, युद्धगत समग्र नीतियों का.. वैज्ञानिकता के सर्वसमृद्ध सतयुग का।। आज भी प्रासंगिक न होता किस्सों में.. छल, कपट और द्वेष के दुष्परिणामों का।। यदि दशहरा सिर्फ पर्व होता विजय का..... जी हां हम दशहरा मानते हैं। बड़े धूम धाम से आतिशबाजी मिठाई और पूजा पाठ के साथ। मनाएं भी क्यों नहीं ये पर्व है भी तो हमारे सनातनी गर्व का रामायण हमें सिखाता है। जीवन के सभी रिश्तों के दायित्व, अपनत्व, सच्चे प्रेम और समर्पण का प्रजा और राजा के सम्बन्धों का कर्म और धर्म के संतुलन का यह युद्ध राम भगवान और रावण के मध्य अच्छाई और बुराई का ही युद्ध नहीं था। इस युद्ध के माध्यम से सभी...

सॉरी कहें तो दिल से कहें - नीता झा

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अपने शब्दकोश में sorry शब्द हटा दें तो हमसे गलतियाँ कभी नहीं होंगी....      जी हाँ बात अटपटी जरूर है लेकिन सही है। हम प्रायः गलती होते ही एक मिनट के अंदर ही सॉरी बोल पड़ते हैं। ये सामान्य शिष्टाचार में हमे सिखाया जाता है। बचपन मे इसी तरह की बातों से हम काफ़ी नम्बर भी अर्जित कर लेते हैं। फिर जो बातें हमारा परसेंट बढ़ती हैं उन्हें अपने दैनिक जीवन मे शामिल कर लेते हैं। कुछ टूट गया सॉरी, कुछ गिर गया सॉरी, कुछ बिखर गया सॉरी.....सॉरी.... सॉरी.... और सिर्फ सॉरी.... बड़े होते होते इस अनगढ़ पत्थर से शब्द को हम पैने हथियार की तरह इस्तेमाल करने लगते हैं। कभी हम जो हड़बड़ी में टकराकर किसी के थामे हुए समान को गिराकर मासूमियत से सॉरी बोलकर बच निकलते थे। वही जब बड़े हुए किसी का दिल तोड़ कर, किसी को सबके सामने गिराकर और उसके आत्मसम्मान को टुकड़े टुकड़े बिखेर कर सॉरी कहने की लत सी पड़ जाती है। क्या ये अपराध नहीं....    यदि बार बार वही गलतियां दोहराकर सॉरी कहा जाए तो यह सुनने वाले को पीड़ित करता ही है। स्वयं भी व्यक्ति अपने आपको धोखा दे रहा होता है। कभी कभी ये छोटी छोटी गलतियां और...

सहित्योदय कविसम्मेलन - नीता झा।

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काफी समय के बाद किसी आयोजन में जाना हुआ अच्छा लगा