यदि दशहरा सिर्फ पर्व होता विजय का.. बुराई पर अच्छाई की होती जीत का।। तो सिमट जाता सतयुग में ही कहीं.. अनेकों विजयी गाथाओं के मध्य ही।। भुला दिया जाता कुछ पीढ़ियों में ही.. पर्व है एकता की अदम्य शक्ति का।। आखरी छोर तक स्वयं पहुंचाने का.. सफल नेतृत्व के सुंदर उदाहरण का।। हां यदि दशहरा सिर्फ पर्व होता विजय का.. सदियों तक पूजा न जाता देवस्थानों में।। साक्षी न बनता भक्त और भगवान का.. अतुलित बल में छिपे कोमल मन का।। युद्ध, योद्धा, युद्धगत समग्र नीतियों का.. वैज्ञानिकता के सर्वसमृद्ध सतयुग का।। आज भी प्रासंगिक न होता किस्सों में.. छल, कपट और द्वेष के दुष्परिणामों का।। यदि दशहरा सिर्फ पर्व होता विजय का..... जी हां हम दशहरा मानते हैं। बड़े धूम धाम से आतिशबाजी मिठाई और पूजा पाठ के साथ। मनाएं भी क्यों नहीं ये पर्व है भी तो हमारे सनातनी गर्व का रामायण हमें सिखाता है। जीवन के सभी रिश्तों के दायित्व, अपनत्व, सच्चे प्रेम और समर्पण का प्रजा और राजा के सम्बन्धों का कर्म और धर्म के संतुलन का यह युद्ध राम भगवान और रावण के मध्य अच्छाई और बुराई का ही युद्ध नहीं था। इस युद्ध के माध्यम से सभी...