सॉरी कहें तो दिल से कहें - नीता झा

अपने शब्दकोश में sorry शब्द हटा दें तो हमसे गलतियाँ कभी नहीं होंगी....
     जी हाँ बात अटपटी जरूर है लेकिन सही है। हम प्रायः गलती होते ही एक मिनट के अंदर ही सॉरी बोल पड़ते हैं। ये सामान्य शिष्टाचार में हमे सिखाया जाता है। बचपन मे इसी तरह की बातों से हम काफ़ी नम्बर भी अर्जित कर लेते हैं। फिर जो बातें हमारा परसेंट बढ़ती हैं उन्हें अपने दैनिक जीवन मे शामिल कर लेते हैं। कुछ टूट गया सॉरी, कुछ गिर गया सॉरी, कुछ बिखर गया सॉरी.....सॉरी.... सॉरी.... और सिर्फ सॉरी....
बड़े होते होते इस अनगढ़ पत्थर से शब्द को हम पैने हथियार की तरह इस्तेमाल करने लगते हैं। कभी हम जो हड़बड़ी में टकराकर किसी के थामे हुए समान को गिराकर मासूमियत से सॉरी बोलकर बच निकलते थे। वही जब बड़े हुए किसी का दिल तोड़ कर, किसी को सबके सामने गिराकर और उसके आत्मसम्मान को टुकड़े टुकड़े बिखेर कर सॉरी कहने की लत सी पड़ जाती है। क्या ये अपराध नहीं....
   यदि बार बार वही गलतियां दोहराकर सॉरी कहा जाए तो यह सुनने वाले को पीड़ित करता ही है। स्वयं भी व्यक्ति अपने आपको धोखा दे रहा होता है। कभी कभी ये छोटी छोटी गलतियां और उसपर थोपी गई सॉरी की कील बड़े बड़े राधों को भी जन्म देती है। साथ ही इस वजह से हुई दुश्वारियां बहुत सी जिंदगियों की खुशियां हर लेती हैं। सॉरी कहें तो दिल से कहें दिल कभी गलतियां दोहराने नहीं देगा।
 नीता झा

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