क्या चाहते तुम मात - पिता से.. अपने मन पर झाँको तो कभी।। जीवन की खुशियां साझा कर.. जो हर्षाते तुम्हारी मुस्कान पर।। तोड़ रहे तुम चोट देकर भारी.. उनकी कोमल भावनाएं सारी।। जिन्होंने त्यागी तुमपे जवानी.. क्या जान नहीं उनकी प्यारी।। करके सेवा पा लो सच्चे सुख.. जैसे गो माता की सेवा कर। दुग्ध पीने पौष्टिक, सुस्वादु.. पर ये कैसी चाहत कहो तुम।। जब - तब तुम कील चुभोते.. पीते जाते बदन का रिसता खून।। क्या इतनी भी शरम शेष रही ना.. देख सको उनकी वय और व्याधि।। कैसे तुम्हे प्यार कर सीने से लगाएं.. जब तुम्हे जरा भी इनसे मोह नहीं।। माता - पिता के साथ बच्चों का रिश्ता सदा से ही सबसे अधिक आत्मिय होता है। वो अपना सारा जीवन उनकी देख भाल, पढ़ाई, स्वास्थ्य, खुशियों और तमाम उम्दा परवरिश के लिए लगाते हैं, और बच्चे बदले में उनसे सच्ची श्रध्दा रखते हैं। ठीक भगवान और भक्त की तरह..... ये होना भी चाहिए। याद रखें आपके माता पिता पालनहार होने के साथ - साथ सामान्य इंसान भी हैं। जो धीरे - धीरे अशक्त होने लगे हैं। उन्हें भगवान की भावना से पूजना उनके उम्र की उन सीमित साँसों ...
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नवंबर, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं
दिल का ही सारा कुसूर - नीता झा
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अचानक तो नहीं टूटा है.. फिर किस बात की हैरत।। हर सांस से ली है नफ़रत.. हर सांस पे छोड़ी हिम्मत।। आखिर दिल ही था टूटा.. उसकी थी बड़ी हसरत।। तोहमतें किसी पर क्यों.. और कैसी कहो अदावत।। फिर फर्क ही क्या कहो.. पिंजर में कैद पंछी ही है।। पैबस्त जिस्म में महफूज.. बिखरे भी तो पता न चले।। दिल का ही तो बहा खून.. दिल ही कि ख़ता भी है।। दिल का ही सारा कुसूर.. दिल का ही सारा कुसूर।। नीता झा