दिल का ही सारा कुसूर - नीता झा

अचानक तो नहीं टूटा है..

फिर किस बात की हैरत।।

हर सांस से ली है नफ़रत..

हर सांस पे छोड़ी हिम्मत।।

आखिर दिल ही था टूटा..

उसकी थी बड़ी हसरत।।

तोहमतें किसी पर क्यों..

और कैसी कहो अदावत।।

फिर फर्क ही क्या कहो..

पिंजर में कैद पंछी ही है।।

पैबस्त जिस्म में महफूज..

बिखरे भी तो पता न चले।।

दिल का ही तो बहा खून..

दिल ही कि ख़ता भी है।।

दिल का ही सारा कुसूर..

दिल का ही सारा कुसूर।।

नीता झा

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