एक बच्चे का जन्म - Neeta Jha
एक बच्चे का जन्म - Neeta Jha
सत्तर के दशक के लोग जिन्होंने आज़ादी को महसूस किया है उन्होंने बचपन की कितनी ही रातें अपने अड़ोस - पड़ोस या रिश्तेदारी के स्वतंत्रता सेनानी,शहीद परिवार या वर्तमान समय मे भी सच्चे देशभक्त किरदारों की कथाओं के साथ ही गुजरती थीं वो नाना-नानी, दादा-दादी से किस्सों कहानियों के साथ जीवन जीने के गुर भी कब सीख जाते पता भी नही चलता अलग-अलग लोग, भाषाएं, परिवेश में किस्से कहे जाते चाहे वह गीत, संगीत के माध्यम से हो या और किसी तरह से हो सबका सार होता बच्चों का सर्वांगीण विकास तथा अपनी अपनी ख़ास कला या विद्या से आनेवाली पीढ़ी को पोषित करना इसके केंद्र में यह भावना होती थी फलां बच्चा मेरी विद्या का सही लाभ देश समाज को देगा और वह पूरी लगन से उसे अपनी विशिष्ट कला की बारीकियां सीखना एक पुनीत कार्य समझ कर अपनी पूरी शक्ति लगा देते थे। इसके लिए चाहे खुद को ही क्यों न कष्ट उठाना पड़े यही भावना एक देश को उच्च शिखर पर ले जाने का एक मात्र रास्ता है।
अब सवाल ये उठता है क्या वे गुणी जन अब नहीं मिलते?
इसका जवाब है बिल्कुल मिलते हैं हमारे एकदम पास जो लगातार हमारी तरफ देख रहे हैं कि कब हम उन्हें कहें क्या आप मेरे बच्चे के भी वैसे ही दोस्त बनेंगे जैसे मेरे दोस्त होते थे, और यकीन मानिए आपका बच्चा उन अद्भुत देव पुरुष, देवी स्वरूप बुजुर्ग के सानिध्य में निखर उठेगा वह बातों के सही अर्थ निकालना भी सीख जाएगा बच्चे बुजुर्गों के साथ समय बिताना पसन्द करते हैं और जल्दी ही मित्रवत होते हैं। एक दूसरे की बातें आसानी से समझते हैं एक मित्र लम्बा जीवन जी चुका है उसके पास अनुभव की जर्जर किन्तु ठसाठस भरी पोटली है तो दूसरा मित्र नई चमकदार किन्तु लगभग खाली पोटली लिए बैठा है उसे अपने मित्र से अनुभव रूपी कीमती हीरे जवाहरात लेने दीजिए भविष्य में काम आएंगे तो दूसरे मित्र की पोटली भी कुछ हल्की होगी तो गन्तव्य तक का सफर आसान होगा।
बच्चे ही क्यों हर व्यक्ति को ताउम्र कुछ न कुछ सीखते-सिखाते रहना ही चाहिए, पढ़ाई में अच्छे नंबर लाना अच्छी बात होती है जब बच्चा जीवन के अन्य क्षेत्र में भी बराबर रुचि रखता हो तन से स्वस्थ हो मन से भी स्वस्थ प्रसन्नचित्त होगा तो जीवन की हर चुनौतियों का सामना सहजता से कर पाएगा बच्चों को अच्छे जीवन के लिए तैयार किया जाना चाहिए लेकिन कैसे जीना है उसे ही तय करना चाहिए।
आज के परिवेश में संयुक्त परिवार में रहना थोड़ा मुश्किल हो गया है, किंतु समय निकालकर सभी लोग एकसाथ रह सकें ऐसी व्यवस्था करना भी बहुत जरूरी है। बहाने कुछ भी हों त्योहार, पिकनिक, जन्मदिन, पुण्यतिथि या ऐसे ही मिलने वाली छुट्टियां अवसर कोई भी हो आनन्ददायक होगा तो बार-बार ऐसे अवसर हर कोई चाहेगा ऐसे प्यार भरे रिश्तों में पले बढ़े बच्चे जब अपना जीवन जियेंगे निश्चित रूप से बेहतर जीवन होगा।
उन्हें आधा भरा गिलास देखना सीखाना होगा, आधा खाली नहीं, जब वे अपनी उपलब्धियों से खुश होना और नाकामी में चिंतन करना सीखेंगे सफलता की सीढ़ी आसानी से खुशी-खुशी चढ़ेंगे।
विवाहित जीवन की खुशियां भी काफी कुछ व्यवहार पर ही टिकी होती है, आप जैसा सोचते हैं वैसा ही व्यवहार करने लगते हैं। अपनी सोच पर आत्मनियंत्रण होना आवश्यक है। किसी से अच्छे व्यवहार की अपेक्षा करना तब सही है, जब हम उसे अच्छे व्यवहार के लायक माहौल दें। बल-छल पूर्वक आज्ञा मनवाई जा सकती सरस्, सरल गृहस्थी की आधारशिला नही रखी जा सकती, शादी को निभाना दोनों की बराबर की जिम्मेदारी होती है। अपनी अपनी भूमिका में सही होना जरूरी है।
हमारे समाज मे लड़कियों को ससुराल में रहना होता है। अपनी सभी पहचान ससुराल को सौंप कर उन्ही में समाहित हो जाती हैं और लड़के अपने ही घर में होते हैं, अब यहां लड़की को भी बहुत कुछ परिवर्तन लाना पड़ता है, वहां के सारे संस्कारो को आत्मसात करना होता है। जिसके लिए प्रायः लड़कियां मानसिक रूप से काफी कुछ तैयार भी होती हैं, फिर भी कई बार उन्हें छोटी-मोटी असुविधाओं, परेशानियों का सामना करना पड़ता है, यही वह नाजुक समय है, जब ससुराल खास कर पति का सहयोग आवश्यक होता है। साथ ही पत्नी के अस्तित्व की गरिमा का ख्याल रखना भी पति का दायित्व होता है। वहीं लड़कियों को भी पति से अनावश्यक उम्मीदें नहीं लगानी चाहिए, जिसे पूरा करना घर परिवार या रिश्तों को परेशानी में डाले, कुल मिलाकर "तुम- तुम न रहो ,मैं -मैं न रहूं, चलो हम अपना जहां बसाते हैं"
नीता झा
मौलिक,स्वरचित
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