बलिदान - नीता झा

बलिदान
 केतकी ने अपनी साइकिल उठाई और गांव के बाहर वाले तालाब के किनारे पहुंच गई वहां पहुचते पहुचते उसकी रुलाई फुट गई साइकिल आम पेड़ के नीचे लगाकर वह वहां बैठ कर फुट फुट के रोने लगी उसके जेहन में सारी पिछली बातें आने लगीं किस तरह उसने अपने दादाजी और अपने दोस्तों के साथ मिलकर अपनी ग्रामीण सेना बनाई थी जो रोज एक दो घण्टे कोई भी भलाई का काम करते थे पूरे महीने भर का प्लान पहले से बना कर रखते थे दादाजी की देखरेख में सब काम बहुत व्यवस्थित होता था अपने  सेना में रहने के समय के बहादुरी भरे किस्सों के साथ ही वे अपने साथी भाइयों के बलिदानों के किस्से बताया करते साथ ही बच्चों में उच्च आदर्शों का बीजारोपण भी करते रहते उनमें नेतृत्व की छमता भी गजब थी अब तो बच्चों के साथ साथ बड़े भी उनकी इस पुनीत कार्य में मदद करते थे।
  पिछले महीने ही तो दादाजी ने फलदार पेड़ों के पौध लगवाए थे ताकि आने वाले बरसात के मौसम में हर घर में एक एक फलदार पेड़ हों। 
  कुछ दिन पहले की ही तो बात हैअटैक आने से दादाजी चल बसे थे बहुत कोशिशों के बाद भी उन्हें नहीं बचाया जा सका था  तबसे वह इधर आ नहीं पाई थी अब वे पौधे कैसे होंगे पता नहीं किसीने पानी दिया होगा या नहीं और वो तालाब की दूसरी तरफ चलपडी।
  केतकी को अपनी ओर आता देख सबलोग उसकी तरफ आने लगे केतकी भी अपनी मित्र मंडली को देखकर आश्चर्यमिश्रित खुशी से चीख पड़ी तुमसब यहां?
"  तो क्या हम दादू के सैनिक इन पौधों को ऐसे ही छोड़ देंगे ? देखो सब में पौधे निकलने लगे हैं " कहते हुए रुपा ने आगे बढ़ कर उसका हाथ पकड़ लिया और सब मिलकर उन नन्ही नन्ही पौध की निगरानी में लग गए
 केतकी ने अपनी साइकिल उठाई और गांव के बाहर वाले तालाब के किनारे पहुंच गई वहां पहुचते पहुचते उसकी रुलाई फुट गई साइकिल आम पेड़ के नीचे लगाकर वह वहां बैठ कर फुट फुट के रोने लगी उसके जेहन में सारी पिछली बातें आने लगीं किस तरह उसने अपने दादाजी और अपने दोस्तों के साथ मिलकर अपनी ग्रामीण सेना बनाई थी जो रोज एक दो घण्टे कोई भी भलाई का काम करते थे पूरे महीने भर का प्लान पहले से बना कर रखते थे दादाजी की देखरेख में सब काम बहुत व्यवस्थित होता था अपने  सेना में रहने के समय के बहादुरी भरे किस्सों के साथ ही वे अपने साथी भाइयों के बलिदानों के किस्से बताया करते साथ ही बच्चों में उच्च आदर्शों का बीजारोपण भी करते रहते उनमें नेतृत्व की छमता भी गजब थी अब तो बच्चों के साथ साथ बड़े भी उनकी इस पुनीत कार्य में मदद करते थे।
  पिछले महीने ही तो दादाजी ने फलदार पेड़ों के पौध लगवाए थे ताकि आने वाले बरसात के मौसम में हर घर में एक एक फलदार पेड़ हों। 
  कुछ दिन पहले की ही तो बात हैअटैक आने से दादाजी चल बसे थे बहुत कोशिशों के बाद भी उन्हें नहीं बचाया जा सका था  तबसे वह इधर आ नहीं पाई थी अब वे पौधे कैसे होंगे पता नहीं किसीने पानी दिया होगा या नहीं और वो तालाब की दूसरी तरफ चलपडी।
  केतकी को अपनी ओर आता देख सबलोग उसकी तरफ आने लगे केतकी भी अपनी मित्र मंडली को देखकर आश्चर्यमिश्रित खुशी से चीख पड़ी तुमसब यहां?
"  तो क्या हम दादू के सैनिक इन पौधों को ऐसे ही छोड़ देंगे ? देखो सब में पौधे निकलने लगे हैं " कहते हुए रुपा ने आगे बढ़ कर उसका हाथ पकड़ लिया और सब मिलकर उन नन्ही नन्ही पौध की निगरानी में लग गए।
नीता झा

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