"रिश्तों के वेंटिलेटर आने लगे दूर देश से" - नीता झा -भाग - 5
"रिश्तों के वेंटिलेटर आने लगे दूर देश से" - नीता झा भाग -5 वीनू के जाते ही कितना सुना पन भर गया था घर में अभी तो वो भारत भी नहीं पहुंचा होगा और इतनी बोरियत लग रही है। वो महीने भर कैसे रहेगी; रुद्र भी पहली बार पापा को छोड़ कर रहने वाला है.. पता नहीं कैसे मैनेज करेगी! पर वीनू का जाना भी तो बहुत जरूरी था।
वीनू को अमेरिका के साथ अपने देश भारत पर भी बड़ा गर्व हुआ जब वह सीधे अमेरिका से अपने घर तक सकुशल पहुंचा जगह - जगह जांच होती रही जिसमे भगवान की कृपा से हर बार रिपोर्ट निगेटिव आई । सावधानी वश उसे कुछ दिन होम आइसोलेशन में रहने की हिदायत दी गई तमाम प्रक्रियाओं से गुजरने के बाद जब उसने अपने घर की दहलीज में कदम रखा मन भावुक हो गया पापा से कैसे मिलेगा?
अभी तक तो दूर था लेकिन एक ही घर में रह कर वो उनसे नहीं मिल पाएगा.....
कितना अजीब लगेगा पर और कोई रास्ता भी तो नहीं है। सिवाए सब्र करने के
कॉलबेल बजाने के कुछ देर बाद तक दरवाजा नहीं खुला वो समझ गया मम्मी को यहां तक आने में थोड़ा समय लगेगा। वह बाहर देखने लगा, सारे रास्ते सुनसान, हर घर बन्द था। लगता था जैसे सभी लोग घर छोड़ कर कहीं चले गए हों। अपनी गली को वीनू ने कभी इतना सुनसान नहीं देखा था। तभी प्रखर के घर से गेट खुलने की आवाज आई प्रखर बाहर आने लगा तो आंटी ने रोक लिया। वहीं से खड़े खड़े ही कुशलक्षेम पूछ लिया उनकी आवाजें सुन अस-पास की किड़कियोँ से चेहरे झांकने लगे।
आज पहली बार सब इस तरह से उसका स्वागत कर रहे थे। न कोई सामने आया न प्रणाम, आशीष नहीं तो सबको प्रणाम करते और आशीर्वाद देते-देते हालत खराब हो जाती थी। पापा के पहले ही उसके दोस्त उसे लेने पहुंच जाते थे। अपने अपने घरों से ही सभी को अभिवादन किया इतने में दरवाजा खुलने की आवाज आई मम्मी ने दरवाजा खोला उन्हें देख कर वीनू को अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ उसकी आंखें भर गई। किसी तरह अपने आप को सम्हाल कर उसने दूर से ही प्रणाम किया और बिना कुछ छुए अपने कमरे में चला गया वीनू का कमरा रसोई से लगा हुआ था। जब वीनू की शादी लगी मम्मी ने जिद करके उसके कमरे से दरवाजा तोड़कर अटैच चेंजिंग वगैरह बनवाया था। जो बहुत कम ही यूज होता था। आज उस कमरे की सार्थकता समझ आई।
वीनू फ्रेश हो कर पलंग में ही बैठ गया इतने में मम्मी चाय बिस्किट ले कर आ गईं उसने उन्हें दरवाजे के बाहर ही रखने को कह उनके हटने के बाद चाय पीते-पीते पापा की तबियत वगैरह की बातें करने लगा।
बड़ा मुश्किल था घर आकर बीमार पापा से न मिल पाना लेकिन यही सबके लिए सही था। खाते-पीते रात के कब 9 बज गए पता नहीं चला थकान भी थी। फिर कितने दिन बाद वह अपने कमरे में, अपने बिस्तर में सो रहा था। बिस्तर पे लेटते ही कब नींद आई पता भी नहीं चला।
सुबह बर्तनों की आवाज से नींद खुली वह झुंझला कर उठा ये कमला दीदी इतने साल हो गए अब भी नहीं सुधरी, सुबह - सुबह हल्ला करके जग देती है मम्मी को पता नहीं इनसे क्या लगाव है। पूरी जिंदगी के लिए काम पे रखा है। वह आलस में बिस्तर पर ही पड़ा रहा तभी कमला बाई दरवाजे से लगभग चीखती हुई बोली-" आ गया मेरा राजा बेटा....
मम्मी ने आगाह किया -"अंदर मत जाना अभी कुछ दिन"
" जानती हूं भाभी मेर को भी बीमारी पकड़ लेगा"
मम्मी ने तड़प कर कहा -"पागल कहीं की वीनू को कोई बीमारी थोड़े ही हुई है; बस चार दिन अलग रहने बोले हैं। वो एकदम ठीक है।"
जबसे वीनू आया था पहली बार मम्मी को इतनी जोर से बोलते सुना था। वर्ना वो तो बस उतना ही बोलती थीं जितना वीनू पूछ रहा था।
"जानती हूं भाभी, मैं तो मजाक कर रही थी।"
फिर मम्मी को रसोई में जाते देख धीरे से -"बोली भैया से मिला ?"
"नहीं अभी नहीं मिल सकता दीदी"
उसके चेहरे में पीड़ा झलकने लगी -"बहुत तकलीफ में हैं।"
"उनको देख - देख के भाभी भी बीमार जैसे हो गई हैं। सब बन्द है। तब भी मैं सबसे छुप के आती हूं। वो बिचारी अकेले क्या - क्या करेगी और थोड़ा हंस बोल भी लेती हूं नहीं तो कौन है यहां बिचारे लोगों का" आंसू पोछते हुए बात पूरी की "भैया तो कब से चुपचाप पड़े रहते हैं। सब समझ के भी कुछ कर, बोल नहीं पाते...
"अच्छा किया तू आया...लेकिन इतने देर से क्यों आया? भाभी के भाई भाभी और रजत बाबू लोग नहीं होते तो भैया का बचना मुश्किल था।"
वीनू सिर झुकाए चुपचाप सुनता रहा इतने में रसोई से मम्मी की आवाज आई -"कमला चाय ले लो "
"हाँ भाभी आ रही हूं....
लगभग चीखती हुई वह रसोई की तरफ चली गई।
पहली बार उसका चीखना बुरा नहीं लग रहा था। अपना कप ले कर शायद वो पापा के पास चली गई क्योंकि थोड़ी देर बाद उनके कमरे से आवाज आ रही थी -"देख भैया वीनू बेटा आया है। मिलने अब जल्दी ठीक हो जाओगे।"
"अच्छा दिख रहा है हमारा वीनू...साहब जैसा"और हंसने लगी।
जिस कमला बाई से वह बचपन से बात बे बात लड़ता रहता था। आज उसके आने से घर में हलचल तो थी। मम्मी बताती थी पहले इसकी सास काम करती थी। जब अशक्त होने लगी तो अपनी सबसे छोटी बहु को यहां काम पर लगा दी तबसे यहीं काम करती है। कितने साल हो गए याद नहीं.... ।
नीता झा
क्रमशः
Heart Touching....👌👌
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