शरद का चांद आया आंगन - नीता झा
शरद का चांद आया आंगन...
पारिजात के फूलों से मिलता।।
लचकती टहनी से अटकता...
थोड़ा छुपता, थोड़ा रुकता।।
शरद का चांद आया आंगन...
अपनी शीतलता का नेह लिए।।
बैठ दरी में खीर का भोग लगा...
अमृततुल्य प्रसाद हमे देता।।
शरद का चांद आया आंगन...
चमकता, मुस्काता उपवन में।।
कौमुदी उत्सव की उमंग लिए...
गीत, संगीत से जीवन सजाने।।
शरद का चांद आया आंगन...
सबकी रक्षा करने की खातिर।।
औषधियों में अमृत बरसाता...
स्वच्छ चांदनी से नहलाता।।
शरद का चांद आया आंगन...
उषा से अठखेलियाँ करता।।
नन्ही ओस बूंदें पत्तों में रख...
चला बादलों के देस मिलने।।
नीता झा
शरदपूर्णिमा और कौमुदी उत्सव.....
कौमुदी मतलब चांदनी। हम कल्पना करें जब आज की तरह न लोगों के पास तेज़ रोशनी की व्यवस्था रही होगी न बहुत ज्यादा साधन न इतनी अधिक जनसंख्या ऐसे में छोटे - छोटे राज्यों में बसे रजवाड़े अपने मनोरंजन की व्यवस्था प्रायः राजा के संरक्षण में करते थे जिसमें सारी प्रजा राजपरिवार के साथ उत्सव मनाती थी। जब सामान्य से अवसर को भी सब लोग मिलकर मनाते हैं; वह विशेष हो जाता है।
आप कल्पना कीजिए बरसात के बाद जब हल्की ठंड पड़ती हो और पूरी पृथ्वी उजली - उजली चांदनी से नहाई हो ऐसे में जब सारे लोग एक जगह जमा होते हों तो वह समय अपने आप में कितना आनंददायक होगा और यही उत्सव कौमुदी उत्सव के नाम से प्रचलित हुआ इस कौमुदी उत्सव में सारे लोग रात भर पूजा - पाठ,नृत्य, गायन, नाटक, खेल, भोज इत्यादि के साथ उत्सव मनाते थे। हल्की ठंड और शरद का चांद हर किसी को अपने आकर्षण में बंधने पर मजबूर कर देता तभी तो यह कौमुदी उत्सव कई दिनों तक चलता ही रहता था।
यह परंपरा आंशिक परिवर्तन के साथ आज भी प्रचलन में है। कौमुदी उत्सव ही आज का शरद पूर्णिमा है, कोजगरा है। नवविवाहित युगलों का दोनों परिवार एवं परिजनों द्वारा मनाया जाने वाला सौहार्दपूर्ण आनन्दोत्सव जो शरद के चंद के साथ आता है। ऋतु परिवर्तन का सुखद अहसास लिए....
नीता झा
बहुत बढ़िया दी,,🙏🙏
जवाब देंहटाएंबहुत ही रोचक
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया 👌👌
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर .,, वाह
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर बहुत बढ़िया ।
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