शीर्षक - नर्तन नन्ही बूंदों का - नीता झा।


वो नर्तन नन्ही बूंदों का सजन...

आल्हादित करता मेरा तन मन।।

धूप-छांव के खेल खेलता नभ...

बादल आते जब उमड़-घुमड़।।

बिजली कड़क चमके प्रियतम...

इंद्रधनुषी आखेटक मोहता मन।।

बुलाती बछिया को रंभा गौ मां...

काग कलरव सा व्याकुल मन।।

बन्द खिड़कियां झकझोरती...

उत्तुंग शिखर लांघती ठंडी हवा।।

द्वार खोलने आतुर शोर मचाती...

वायुवेग से लचकती बलखाती।।

बूंदों से होता फिर उन्मुक्त प्रसंग...

नेह भाव से प्रफुल्लित धरती पर।।

चहुं ओर खिलते फूल सुवासित...

चहुं ओर खिलते फूल सुवासित।।

नीता झा

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