संदेश

नवंबर, 2022 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

हमारी निर्वि प्यारी निर्वि - नीता झा

चित्र
*तीन महीने की हुई है निर्वि... तीसों नखरे दिखाए रही है।। मात पिता और दादा दादी... फुले नहीं समाए रहे हैं।। भाग्य से आई बेला सुहानी... दादी बलाएं उतार रही है।। तीन महीने की हुई है निर्वि... तीसों नखरे दिखाए रही है।। निर्वि से घर मे खुशी जगी... घर की शोभा बढ़े रही है।। शुभ प्रसंग की बेला आई... नानी गीत गाए रही है।। तीन महीने की हुई है निर्वि... तीसों नखरे दिखाए रही है।। अरे रतजगे की आदि निर्वि... सबको रात जगाए रही है।। शुद्धमति निर्वि देवी स्वरूपा... बाल लीला से हंसाए रही है।। नीता झा*

मैं कुंदन बन निखर गई.... नीता झा।

चित्र
थाम लिया सहज ही हमको.. सबसे मजबूत सहारा रहा।। चटक सिंदूरी या था उदास.. नया नेवला या पैबस्त भरा।। पर वो तो सदा हमारा रहा.. मां सच कहते हैं हम तुमसे।। आंचल तुम्हारा छत जैसा.. सदा मेरा पता दिया करता ।। मैं थामे आंचल चलती थी.. सारी विपदा तुम से होकर।। यदा कदा मुझ तक आती.. कौन सा जादू है बताओ।। तुम्हारे कोमल आंचल में.. काल गति भी ठिठक गई।। हौले से फिर बुझी निकली.. तुम्हारे आंचल की छांव में।। मैं तो कुंदन बन निखर गई.. मैं तो कुंदन बन निखर गई।। नीता झा