मैं कुंदन बन निखर गई.... नीता झा।



थाम लिया सहज ही हमको..
सबसे मजबूत सहारा रहा।।
चटक सिंदूरी या था उदास..
नया नेवला या पैबस्त भरा।।
पर वो तो सदा हमारा रहा..
मां सच कहते हैं हम तुमसे।।
आंचल तुम्हारा छत जैसा..
सदा मेरा पता दिया करता ।।
मैं थामे आंचल चलती थी..
सारी विपदा तुम से होकर।।
यदा कदा मुझ तक आती..
कौन सा जादू है बताओ।।
तुम्हारे कोमल आंचल में..
काल गति भी ठिठक गई।।
हौले से फिर बुझी निकली..
तुम्हारे आंचल की छांव में।।
मैं तो कुंदन बन निखर गई..
मैं तो कुंदन बन निखर गई।।
नीता झा 

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