छोटा सा घर (लघु कथा) - नीता झा
लघु कथा- छोटा सा घर
बस में बैठते ही शेफाली अपनी पुरानी यादों में खो गई वो गांव, वहां की आबोहवा, वहां के सारे चिर परिचित चेहरे, हर चेहरे से झलकता आत्मीय रिश्ते का नाम और उन तमाम नामो में सर्वोपरि पुजारिन नानी।
उनका ख्याल आते ही शेफाली का मन भर आया वह भावुक हो गई किसि तरह रजत ने उसे समझा बुझा कर शांत किया और उसकी तन्द्रा वापस उन्ही गलियों में विचरने लगी मंदिर के प्रांगण में स्थित छोटा सा घर जिसमे वह बड़े लाड़ प्यार से नानी के साथ रहती थी नानी मंदिर की अघोषित सर्वेसर्वा थीं और वो उनकी सबकुछ थी।
कुछ बड़ी हुए तो उसे पता चला कोई उसे मंदिर प्रांगण में छोड़ गया था और नानी ने उसे पालपोस कर बड़ा किया और जब वह पढ़ लिख कर योग्य हो गई तो सर्ववगुण सम्पन्न रजत से व्याह करवाया बड़े ही मनोयोग से सारे गांव ने मिलकर इस बिटिया का व्याह रचाया खबर आई थी नानी बीमार हैं शेफाली के सास ससुर ने दोनों को नानी को अपने घर लिवा लाने भेजा ताकि उनका समुचित इलाज हो सके और नानी अब बाकी जीवन आराम से उनके साथ रह सकें।
नीता झा
मौलिक, स्वरचित लघुकथा
वाह ,,,,मैं तो मन ही मन सारे दृश्य की कल्पना कर तिया ,,, इतना सजीव रूप से लिखा आपने
जवाब देंहटाएंवाह एक से एक लेख और कविताएँ हैं आपकी | पत्रिकाओं में भी दें
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कथा है।
जवाब देंहटाएंवाह इतनी सुंदर कहानी अगर पटकथा में परिवर्तित हो जाये तो एक शानदार नाट्यय मंचन हो सकता है।
जवाब देंहटाएंये चित्त में उमड़ती भावनायें हैं जो लेखनी रूप में प्रकट हो रहीं हैं
जवाब देंहटाएंवाह बेहतरीन
बहुत अच्छा
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