लेखनी जब रो रही हो (कविता) - नीता झा
लेखनी जब रो रही हो (कविता) - नीता झा
लेखनी जब रो रही हो
अनमनी सी हो रही हो
औचित्यहीन नियम जब
स्याही खून सी हो रही हो
कह लेने दो कवि को
रोने दो तुम कलम को
अपने दुख लिखने दो
उसके ग़मो को रीतने दो
यदि रोक लिए तुमने
रोते, उफनते उदगार
तो शायद आ जाए बाढ़
हुई यदि हालत इससे बदतर
तो कलम की वेदना मुरझाए
और विभिन्न रसों से पगी सनी
कृत्रिमता की दीवानी हो जाए
कविता के आभामंडल को
उसकी सुंदर रस धारा को
आहत हो तो रो लेने दो
मुक्त करो कविता को
तरह तरह के वचनों से
उसे अपने मनोभाव से
हौले हौले बहते रहने दो
बनादो रास्ते पृथक चाहे
पर उसे अपनी मनोदशा
खुले आम कह लेने दो
- नीता झा
बेहतरीन प्रस्तुति,,,,
जवाब देंहटाएंएक सुलझी हुई कवित्री की सुलझी हुई रचना,,,,,
कवि हृदय की झझकोरती वेदना,,,
Bahut sunder kavita hai didi
जवाब देंहटाएंBahut hi badia rachana jiji👏👏👏
जवाब देंहटाएंआप की वजह से कविता और हिन्दी ज़िन्दा हैं,
जवाब देंहटाएंहिंदी सॉन्ग लिरिक्स
👌👌👌👌
जवाब देंहटाएंआपकी यह कविता हृदयस्पर्शी है ,
जवाब देंहटाएंवाह लेखनी ऐसी चली कि सराबोर कर गई
जवाब देंहटाएंआज भी वही दम है लेखनी में
जवाब देंहटाएंवाह एक से बढ़कर एक शानदार रचनाएं वाह