दीवारों के भी कान होते हैं - नीता झा (कहानी)

     सफलता पर लेषमात्र भी संशय न था किन्तु डर था कहीं कुछ ऐसा न हो जाए जिससे कहीं कोई गड़बड़ हो और इन तीनो भाई- बहन की सारी तैयारी धरि की धरि रह जाए तीनो रात में काफी देर तक कल सुबह की तैयारियों पर चर्चा करते रहे सनी के बड़प्पन का स्नेहा और सनद सम्मान करते थे पर स्नेहा सनद की चर्चा बार बार झड़प में बदल जाती तब सनी ही शांत कराता।
     इधर परेश प्रीति की आंखों से भी नींद नदारत थी जिस अवकाश को नौकरी के दौरान तरसते थे वो अब हमेशा के लिए रिटायरमेंट की शक्ल में उन्हें डरा रहा था थे। 
     
     खैर न वक्त रुकता है न वक्त के निर्धारित फैसले, कल सुबह उठना भी है कह कर प्रीति ने लाइट ऑफ करदी
     सुबह सुबह दैनिक कार्यों से निवृत होकर जब प्रीति परेश हॉल में आए उनकी सोच के विपरीत घर पूरी तरह से साफ सुथरा, व्यवस्थित था, कल ऑफिस विदाई समारोह से लौटने के बाद वे सब काफी थक गए थे तो सब सुबह समेटेंगे सोचकर बच्चे ऊपर आराम करने चले गए थे।
     
     प्रीति समझ गई उसे ज्यादा थकी हुई देख प्रायः बच्चे ऐसे सरप्राइज देते हैं उसे अच्छा लगा मुस्कुराती हुई जैसे ही वह किचन की तरफ गई वहां तीनो भाई बहन नाश्ता बनाने में जूटे थे सनी ने प्रीति का हाथ पकड़ कर उसे कुर्सी में बिठाते हुए कहा मम्मी चाय नाश्ता तैयार है चलिए जल्दी जल्दी खाकर बाहर जाना है आपलोग फटाफट तैयार हो जाएं प्रीति ने आश्चर्य से पूछा पर जाना कहाँ है?
     
     रास्ते में पता चल जाएगा बस आपलोग फटाफट तैयार हो जाएं।
     
     गाड़ी में बैठते हुए दोनों जानना चाहते थे बच्चे आखिर कहाँ ले जा रहे हैं, किसीने कुछ बताया नहीं जब उनकी गाड़ी उनके पुराने घर की तरफ मुड़ी तो लगा बच्चे उन्हें अपने गांव ले जाना चाहते हैं उनके चेहरे में मुस्कान आ गई बहुत समझदार हो गए हो तुमलोग कहकर परेश ने सनद का सिर सहलाया अरे पापा अभी आपने हमारी समझदारी देखी ही कहाँ है पहले घर तो चलिए बातों ही बातों में वो घर पहुंच गए।
     
     घर के बाहर शामियाना, कुर्सियां, दरी वगैरह लगी हुई थीं बड़े भैया भाभी सबकी अगवानी में थे गाड़ी रुकते ही सबलोगों ने खुशी खुशी उनका स्वागत किया फिर बड़े भैया ने स्वागत भाषण के पश्चात माइक सनी को दिया।
     
     सनी सामान्य भाषण के पश्चात कहा पापा ने अपना पूरा जीवन पूरी लग्न और प्यार से शिक्षक का दायित्व निभाया हमेशा से ही उनकी और मम्मी की इच्छा रही है अपने गांव में सर्वगुणसम्पन्न आदर्श स्कूल खोलें ताकि हमारी तरह बाकी बच्चों को भी शिक्षा के नाम पर अपना घर बार छोड़ कर बाहर न जाना पड़े इसलिए ताऊजी, ताई जी और आप सबो की सहमति से पापा मम्मी का ये सपना पूरा होगा सनी की बातें सुन दोनों की आँखें भरआईं। उनसे तो कुछ कहते ही नहीं बन रहा था। प्रीति ने ही धन्यवाद ज्ञापन किया।
     जब सब चले गए घर के ही लोग थे तो परेश ने कहा पता नहीं भैया इन बच्चों को हमारे सपनो के बारे में कैसे पता चला हमने तो कभी इनके सामने चर्चा भी नहीं की बच्चे मंद मंद मुस्कुरा रहे थे। स्नेहा ने हंसते हुए कहा याद है पापा एकदिन आप और मम्मी बातें कर रहे थे तब मैने और सनद भैया ने आपकी सारी बातें सुन ली थी "दीवार के भी कान होते हैं" फिर जाकर हमने सबकुछ बड़े भैया को बता दिया सबलोग जोरों से ठहाके लगाने लगे।

नीता झा
मौलिक, स्वरचित
  
 

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