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फ़रवरी, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

चीख़ - नीता झा

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क्या जीवन अब भी चलता है! हम सबके न होने के बाद ? घर आंगन कैसे लगते हैं ! हमारी अर्थी उठने के बाद ? गमलों में पानी कौन दे रहा ? दादी को देता है कौन दवा ? दादू के चश्मे की सफाई, भाई की बेवजह खिंचाई अब कौन करता है भला ? माँ से बातें सहेलियों वाली,  मैं ही तो थी सखी निराली मेरे बिन अब वो कैसी होंगी ? पापा को पानी मैं ही देती थी, उनका सिर मैं ही दबती थी, अब किससे वे सब कहते होंगे ? उनकी मदद अब कौन करता होगा ? कौन उन्हें गुदगुदा हंसाता होगा ? माँ तो हैं बड़ी भुलक्कड़ रोज करती हैं गड़बड़ उनको कौन सब याद दिलाता होगा ? कौन उनसे कहानियां सुनता होगा ? घुमाने किसे ले जाते होंगे ? मेरी चूड़ी, काजल, बिंदी, पायल सबका अब वे क्या करते होंगे ? मेरी गुड़िया को कौन सुलाता होगा ? डॉगी को भैया अकेले घुमाता होगा ? और हां तुम आई हो अभी ही बताओ जिन्होंने बर्बरता की हदें पार कर , हमे मार दिया था तिल तिल कर, वे अब भी जिंदा घूम रहे या फिर उन्हें भी वैसी ही सज़ा दी गई है ? क्या उद्वेलित भीड़ कुछ कर पाई ? या न्यायपालिका सी सुस्त हो गई ? जिन हाथों ने छीन-झपट कर, कुत्सित कृत्य के बाद बेरहमी से लहूलुहान अधमरा ...

गांव की मिट्टी - नीता झा (कहानी)

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सुलभा ने साड़ी ठीक करते हुए आवाज़ लगाई जय-विजय पानी ज्यादा रखना नहीं तो पापा के सामने लड़ने लगोगे पिछली बार की तरह और चप्पल पहनती हुई बाहर आ गई उसके हाथ में नाशते का थैला था। अपने गांव की सीमा में लगे प्लाट पर पहुंच कर तीनो ने बड़े आदर भाव से शहीद विनोद की प्रतिमा को प्रणाम किया और बड़े मनोयोग से प्रतिमा,चबूतरे और आस-पास की जगह को हंसी मजाक और नोक-झोंक करते हुए साफ करने के बाद विनोद की प्रतिमा के पास बैठ गए तीनो अपनी अपनी बातें, शिकायतें सारा कुछ  शेयर करते करते चार प्लेट नाश्ता निकल कर उसमें से एक प्लेट शहीद विनोद के सामने रखकर बड़े ही श्रद्धा भाव से नमन करके उसे तीनो प्लेट में बांट कर खाने बैठ गए। एकबार कुछ लोग यहां की बातें फोटो वगैरह लेने सरपंच जी के यहां परमिशन लेने गए तो उन्होंने बड़े प्यार से समझाया - "आप बाकी किसी भी समय हमारे विनोद बाबू की फोटो ले लीजिए उनके पूरे गाँव की पर ये समय उनके परिवार का होता है तब हम क्या उनके परिवार के बाकी लोग तक वहां नहीं जाते ठीक वैसे ही जैसे रविवार को आप अपने परिवार के साथ अपना समय बिताते हैं।  सिर्फ और सिर्फ आपके बीवी बच्चो...

रात सुहानी - नीता झा

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रात सुहानी बीत गई तो  समझो के सवेरा आ ही गया  काले मेघों के रंग घनेरे  कुछ उजले से दिख जाएं तो  समझो के सवेरा आ ही गया सोई पड़ी आंखें खुल जाए तो समझो के सवेरा आ ही गया मीत गगन के गाएं प्रभाती तो समझो के सवेरा आ ही गया  स्याह भुवन उजले हो जाएं तो  समझो के सवेरा आ ही गया  और दुख सुख चाहे कितने भी हो  सपनो के खट्टे मीठे अहसासों के  आंखों से क़तरे रिस जाएं तो समझो के सवेरा आ ही गया  इतिहास  सुनहरे गढ़ने के जब भाव मानस में आ जाए तो समझो के सवेरा आ ही गया गृहस्थ जीवन के लोभ सभी शून्यकाल से हो जाएं तो समझो के सवेरा आ ही गया  वानप्रस्थ से भाव जागें तो समझो के सवेरा आ ही गया क्या फर्क वन में या भवन में  खुद को खुद में तलाश करो तो समझो के सवेरा आ ही गया  मन बैरागी मनुहार करे और  सुप्त चेतना जागृत हो जाए तो  समझो के सवेरा आ ही गया          नीता झा

समर्पण

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और कितना चाहते हो मीत मेरे तुम समर्पण हर हाथ छुटा, साथ भी और नीर जब नैना भरे हंस के फिर साथ हो ली कुछ न पूछा कुछ कहा ना बस तुम्हारी मैं तो हो ली और कितना चाहते हो मीत मेरे तुम समर्पण हर कदम पे मान देखा हर फर्ज़ पूरे मन से की सारी जो रस्मे थी मिली उनको निभाती मैं रही और कितना चाहते हो मीत मेरे तुम समर्पण अपना सब कुछ वार भी किस विधि सब हार बैठी हाथ पकड़े हक की रेती पूछती मैं आज तुमसे  और कितना चाहते हो मीत मेरे तुम समर्पण नीता झा