चीख़ - नीता झा

क्या जीवन अब भी चलता है! हम सबके न होने के बाद ? घर आंगन कैसे लगते हैं ! हमारी अर्थी उठने के बाद ? गमलों में पानी कौन दे रहा ? दादी को देता है कौन दवा ? दादू के चश्मे की सफाई, भाई की बेवजह खिंचाई अब कौन करता है भला ? माँ से बातें सहेलियों वाली, मैं ही तो थी सखी निराली मेरे बिन अब वो कैसी होंगी ? पापा को पानी मैं ही देती थी, उनका सिर मैं ही दबती थी, अब किससे वे सब कहते होंगे ? उनकी मदद अब कौन करता होगा ? कौन उन्हें गुदगुदा हंसाता होगा ? माँ तो हैं बड़ी भुलक्कड़ रोज करती हैं गड़बड़ उनको कौन सब याद दिलाता होगा ? कौन उनसे कहानियां सुनता होगा ? घुमाने किसे ले जाते होंगे ? मेरी चूड़ी, काजल, बिंदी, पायल सबका अब वे क्या करते होंगे ? मेरी गुड़िया को कौन सुलाता होगा ? डॉगी को भैया अकेले घुमाता होगा ? और हां तुम आई हो अभी ही बताओ जिन्होंने बर्बरता की हदें पार कर , हमे मार दिया था तिल तिल कर, वे अब भी जिंदा घूम रहे या फिर उन्हें भी वैसी ही सज़ा दी गई है ? क्या उद्वेलित भीड़ कुछ कर पाई ? या न्यायपालिका सी सुस्त हो गई ? जिन हाथों ने छीन-झपट कर, कुत्सित कृत्य के बाद बेरहमी से लहूलुहान अधमरा ...