मांग लो मुझसे तुम
जो भी चाहिए तुम्हे
बस अपने अधिकार
कभी मत मांगना
लेलो मुझसे तुम
जब चाहो जो भी
बस अपनी आज़ादी
कभी मत मांगना
घूमना चाहती हो तुम
घूमो जी भरकर
बस पांव की बेड़ी
कभी मत उतारना
लिवा लो मुझसे तुम
दिला दूंगा गहने तुम्हे
हथियार कभी न मांगना
सीखना चाहती हो तुम
सब सीखने दूंगा तुम्हे
चौसठ कलाएं सीखना
मशीन, गाड़ियां, जहाज
कभी मत चलाना सीखना
मांग लो मुझसे तुम
वैभव की सारी सुविधाएं
बस कहीं मालिकाना हक
कभी मत तलाशना
वंश बढ़ाना, मान बढाना
पर वंशवृक्ष, या हक के
कागज़ पर नाम न चाहना
सब मिलेगा चाह से अधिक
मेरी पसन्द से सजना सँवरना
और चाकरी करना तुम
ताउम्र मेरे पौरुष की
नीता झा
👌
जवाब देंहटाएंबहुत ही सटीक कविता,, कविता क्या ऐक्षा लग रहा है,, कि हर नारी की घुटती हुई सांसों को ,, अनकही बातों को आवाज़ दे दी,, शब्द दे दिये
जवाब देंहटाएं👌👌👌👌
जवाब देंहटाएंSahe jiji 👍
जवाब देंहटाएंबहुत ही मार्मिक कविता लिखी है आपने
जवाब देंहटाएंNice..
जवाब देंहटाएंबेहतरीन कृति वाह
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जवाब देंहटाएंबहुत ही मार्मिक कविता 👌👌👌👌😔😔😔😔
Bahut badiya didi
जवाब देंहटाएंDil ko chu gai... 🙏🙏🙏
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