याद हठीली - नीता झा
करती हैं डेरा हरदम डट कर
न सोते चैन पड़े न जगते करार
जीना - मरना लगे हरपल दुश्वार
कितना मस्त होता था फागुन
उसपर फबती सतरंगी बहार
रंगों भरी जब भी आती होली
वह लगती खुशियों की हमजोली
रूप सलोना जब आया उसपर
हुई पराई भेजी गई पिया के घर
चटख रंग की सुनहरी चुनरिया
जब सर पर रखती थी लावण्या
राग रंग से श्रंगारित उसकी काया
पिया के दिल की बनी वो छाया
हंसते खेलते कब खत्म हुई छुट्टी
एकदिन सरहद से आ गया बुलवा
कह गए फागुन को आऊंगा सजनी
खूब खेलेंगे हम अपनी पहली होली
सखियों संग जमकर तैयारी करली
रंग गुलाल और पिचकारी भी ले ली
इक- इक दिन लगता बरसों लम्बा
दिन कटते न कटती उन बिन रैना
जैसे तैसे आ गई मिलन की घड़ी
पर यह क्या सबने उल्टी रीत चलाई
मायके की होली ससुराल में मनेगी
यह कह सब उसके ससुराल चले
बुलावा त्योहार का था पर यह क्या
उसे अच्छे से न सजने ही दिया था
पर चुपचाप संग में रख लाई थी
मिठाई और खुद का बनाया गुलाल
पीली साड़ीभी रख ली थी चुपके से
काका आए थे लिवाने गाड़ी लेकर
लम्बा घूंघट कर बैठ गई थी भाई संग
बंद पलकों में सपने बुनती कई हजार
कब पहुंची पता न चला उनकी कार
भीड़ बड़ी गांवों की गलियों में दिखती थी
घूंघट में लावण्या कोलाहल भांप रही थी
धूम धाम से मनेगा त्योहार पहला हमारा
दो दिन पहले ही तो फोन में कह रहे थे
शायद कुछ खास तैयारी कर रखी होगी
मन में विचारों के ज्वार भाटे से उठ रहे थे
घर के आगे पूरा गांव उमड़ा पड़ा था
मन पहली बार उसका शंका से कांपा था
भीड़ के शोर में था भरा विलाप घुला हुआ
जिसने उसे बिन कहे सब कह डाला था
सारा कुछ पल में भांप अचेत हुई थी वह
कुछ पल में ही सारा कुछ बदल गया था
दुश्मनों को भारी नुकसान पहुंचा फिर
बस्तर का वीर, अदम्य साहसीमाटी पुत्र
वीर गति को साहस से प्राप्त किया था
दुख, पीड़ा ने लावण्या को झिंझोड़ दिया
और सारा दुख लावे सा धधक रहा था
आंसुओं ने अपना स्वरूप बदला था
खून से लथपथ काया की ले सौगन्ध
वह दृढ़ संकल्पित हो उठ खड़ी हुई थी
सबके सम्मुख अपना विचार रख दिया
इन्होंने तो सर्वस्व धरती माँ को सौंप दिया
सब खेलते रंगों की होली हर फागुन
मैने भी यही अब फैसला है कर लिया
नहीं पहनुगी सफेद कफ़न सी साड़ी
वर्दी सेना की पहनूँगी जैसी होली इनकी
वैसी ही मैं भी होली खेल तिरंगे में आऊंगी
वैसे ही मैं भी होली खेल तिरंगे में आऊंगी
नीता झा
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