आकेलापन - नीता झा

क्या तुम जानते थे
सह न सकेंगे ग़म तुम्हारा
बिछड़ कर तुमसे 
बिलख पड़ेगा मन हमारा
पर चले गए
जाना ही था तो गए तुम
हम हैं यहीं
यादों में डूबते उतरते तुम्हारी
तुन्हें खो खाली लौटे
बंद हुए घरों में हम अपने
सबों से दूर हुए
जीने की खातिर ही सही
गुनने लगे हैं सारे
लम्हे जो बिताए साथ साथ
तुम चले गए शांत चुप चाप
न कुछ कहा न कुछ सुने
अब सोचती हूं
पहुँचूँ तमाम उन रिश्तों तक
जिनको मैं जीती हूं
और जो धड़कते हैं मुझमे
टटोलूं, सम्हालूँ, पुकार लूं
मिलकर खूब कहूँ
मन भर उन्हें सुनती ही रहूं
न जाने कब वो मुझसे
या मैं उनसे बिछड़ जाऊं
तुम्हारी तरह शांत, चुपचाप
न कुछ कहे न कुछ सुने
और छोड़ दुं धीरे धीरे जीना
ओढ़ लूं उदासी पर अपनी
खुशियों की एक महीन चादर
नीता झा

टिप्पणियाँ

  1. नीता इतना अवसाद ठीक नहीं,नर हो न निराश करो मन को कर लो शुचि सा नव जीवन को।सुमन बुआ।

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  2. कोई जानेवाला कभी लौट के नही आया आज तक। जो रह जाते है,उनकी जिम्मेदारी और बढ़ जाती है,जानेवाले कि रिक्तता पूरी करना होता है उन्हें,,,,,,,,हौसला रखिए,समय बहुत बलवान है।
    बहरहाल,बहुत सूंदर दिल को छू लेनेवालीअभिव्यक्ति,,,, हमेशा कीतरह

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    उत्तर
    1. आपका बोहोत बोहोत धन्यवाद, मैं आपलोगों का नाम नही देख पा रही हूँ, कृपया अपने कमेंट के नीचे अपना नाम हमेशा लिखें, जिससे मैं जान सकू।

      हटाएं

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