हम और हमारे अपने - नीता झा


कोरोना वायरस के कारण हुए अचानक के लॉक डाउन ने बहुत बड़े खतरे को किसी हद तक बहुत कम किया सही समय पर किये सही फैसले ने हमे जानलेवा मुसीबत से काफी हद तक बचाया अन्यथा प्रभावितों, संक्रमितों और मृत लोगों में इतनी तेजी से वृद्धि होती जिसे सम्हाल पाना मुश्किल होता कुछ कुछ अपवादों को छोड़ दें तो सारा देश इस महामारी में एकजुट हुआ है। 
जो हमारे लिए गर्व की बात है इसकी शुरुआत घर से होती है। हर इंसन अपने आपको और अपने घर के प्रत्येक सदस्य की हिफाजत को लेकर काफी सतर्क है इस महामारी में कोई भी किसी भी तरह की लापरवाही बर्दाश्त नहीं कर रहा है।
   ऐसा ही हौसला यदि हमसब में तब तक कायम रहे जब तक कोरोना के प्रकोप को पूरी तरह से खत्म न किया जा सके तो हम इस समस्या पर विजय पा लेंगे यह कठिन सफर है बहुत सी मुश्किलें हैं किन्तु मंजिल में हमारी और हमारे अपनो की जिंदगी खड़ी है हमारा इंतजार करती ढेर सारी खुशियों के साथ तो आइये पहले तो मुश्किलों पर विचार करें फिर उसके समाधान पर काम करेंगे।
    लॉक डाउन के दौरान सबसे अहम समस्या आर्थिक मंदी की आने वाली है घर में बैठ कर हम बीमारी से तो सुरक्षित हो गए किन्तु काम बंद होने की दशा में पैसों का अभाव होना स्वाभाविक है जिनके पास साधन हैं पैसे हैं वे कुछ समय तक काम चला लेंगे लेकिन रोज कमाने खाने वालों को तुरन्त ही तकलीफ शुरू हो गई सरकार तथा कई संस्थाएं विभिन्न माध्यमो से राहतकार्य भी कर रही हैं जिस वजह से काफी कुछ सहारा तो मिला है किन्तु परेशानी कम नहीं हुई क्योंकि सभी की पुरानी समस्या तो ज्यों की त्यों हैं ये एक अलग से महामारी की मार अलग से ऐसे में परेशानी तो होगी ही अब समय आ गया है आपसी सूझ बूझ और समझदारी से बुरे समय को टाला जाए।
   लॉक डाउन से राहत को न बनाएं सेहत की आफत समय समय पर सरकार द्वाराजब कभी थोड़ी बहुत छूट मिलती है। लोग भीड़ लगाने लगते हैं। जबकि यही समय होता है ज्यादा सतर्कतापूर्वक रहने का हम घर के अंदर कितने सतर्क हैं ये हमारा बाहर किया गया व्यवहार बताता है। हम अपने प्रति लापरवाह होते हैं ये हमारी खुद के प्रतिप्रति उदासीनता दिखाती है साथ ही हमारी लापरवाही से यदि पूरी मानव जाती की जान खतरे में पड़े और हम खुद को न बदलें तो यह हमारी कुत्सित सोच की परिचायक है हमारा ऐसा व्यवहार हमारी गरिमा भी धूमिल करता है। साथ ही हमारी लापरवाही से कोई अपना संक्रमित होता है और
   
   अपनी नहीं अपने सम्पर्क में आने वाले उन सभी लोगों के विषय में सोचिए जो आपके साथ किसी न किसी माध्यम से बंधे - जुड़े हैं उन्हें खोने के जोखिम के साथ हम कैसे बदपरहेजी कर सकते हैं। 
   इस ओर गम्भीरता से चिंतन करने की प्रत्येक व्यक्ति को आवश्यकता है। अभी हमारे साथ "एक तरफ कुँवा, दूसरी तरफ खाई" वाली कहावत चरितार्थ हो रही है ऐसे समय फूंक- फूंक कर कदम रखने की रूरत है। अभी हो सकता है हमे ज्यादा दिनों तक एहतियात बरतने की ज़रूरत पड़े तो ऐसे में उन तमाम संसाधनों की आदत बनाएं जिनसे अभी लोग सुरक्षित रहें।
नीता झा

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