क्या उनसे बात की - नीता झा
शारदा देवी दिन भर परेशान रहतीं बड़े बेटे तनय का फोन नहीं आया कभी शुचि कभी अपने ननद, देवर, बहन, भाई और न जाने कितने रिश्तेदारों को बैठे बैठे याद करती रहतीं पंकज जी कई बार नाराज भी हो जाते उनकी इस आदत पर लेकिन यह भी सच था की उनके साथ पंकज जी भी सबसे कुछ बात कर ही लेते चाहे शारदा जी की हंसी उड़ाने के बहाने ही पर जल्दी से फोन खींच लिया करते।
यह हाल अमूमन हर घर का हो गया है जहां के बच्चे पढ़ने, कमाने को अन्यत्र रहते हैं।
बड़ा खाली-खाली सा लगता है। मन करता है बार बार मिल आएं जाते भी हैं सबको सकुशल देख खुशी से वापस घर आते हैं। अब घर में बचे दो लोग एक दूसरे को देखते समझते सही मायने में एक दूजे के लिए बने यह समय होता है एक दूजे की परवाह करने का खट्टी मीठी तकरार कर प्यार से कभी मनुहार से मनाने का और अपने सभी रिश्तों को कुशल माली की तरह की तराशने का तो कभी अपने अपनो के बीच बैठ कर अपनी मुश्किलें सुलझाने का जैसे अधपका फल अपनी मीठी खुशबू से पूरे वातावरण को अपने होने का सुखद अहसास करता है! जैसे अधखिला फूल अपनी मोहक खुशबू से मन खुश कर देता है वैसे ही अपने जीवन मूल्यों का सही पोषण कर अपनी महती जिम्मेदारियों के साथ खुद को समय देने का बड़ा ही दिलचस्प दौर होता है।
"हम दो रह गए एक दूजे का साथ निभाने
हमारे दो निकल पड़े अपनी मंज़िल पाने"
सब यही चाहते हैं। हर गृहस्थी इन्ही छोटे-छोटे कदमो के साथ मंजिल तक पहुंचती है। साथ ही जीवन का धीरे धीरे उत्तरार्ध की तरफ बढ़ता सफर दम्पत्ति को थकाता भी है बढ़ती उम्र की छोटी छोटी तकलीफें सावधान भी करती हैं।
ऐसे में कभी कभी अकेलापन बोरियत भरा लगने लगता है।
तब बहुत बुरा लगता है जब कोई अपना दुनियां से चला जाए और उस व्यक्ति की यादों से उबर पाना बहुत मुश्किल होता है यदि मृतक दम्पत्ति में से ही कोई एक हो तो उनके अकेलेपन और दुख की कोई सीमा नहीं रह जाती एक तो बरसों के साथी को खोने का ग़म उसपर उनकी व्यवस्था को लेकर किए गए परिजनों के फैसले....
प्रायः ऐसे फैसले बहुत सोच समझ कर ही किए जाते हैं। पर कभी कभी सहायता के नाम पर उनकी बाकी बची तमाम उम्र की बंदिशें उन्हें तोड़ कर रख देती हैं।
उनसे यथा सम्भव मिलिए, समय बिताइए ऐसी कोशिश करें कि वो आपके दिए लम्हों से खुश हो पाएं दुनियां में ऐसा बहुत कुछ होता रहता है जिससे वो खुश हो सकें जब मिलने जाएं या फोन करें तो उन बातों का जिक्र जरूर करें। उनके दुखों को कुरेदें नहीं बस सुने समाधान हो सके तो करें इस बात का ध्यान विशेष तौर पे रखें कि आपका दिया हुआ थोड़ा सा समय उनके लिए परेशानी का सबब न बने कुछ करना चाहें तो उनके अपनो के साथ उनकी स्वस्थ भावना के साथ मदद करें।
नीता झा
आपकी लेखनी जीवन के आस पास घूमती समस्याओ ओत प्रोत होती है,,,,,,एकदम यतार्थवादी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंसराहनीय प्रयास । जीवन का सच।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएं👍
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छा लेख... छोटी सी कहानी के साथ आपने बहुत बड़ी समस्या को सुलझाने का प्यारा संदेश दिया है 🙏🙏🙏 वेदान्त झा
जवाब देंहटाएंसच में,, यह कहानी नहीं आपबीती है ,, सबके साथ यह नाैबत आनी ही है।
जवाब देंहटाएं