गांव - नीता झा
गांव का सबके लिए अलग अलग मतलब होता है। मेरे लिए गांव का मतलब सुकून, मेहनत और भाईचारा एक गांव मतलब बहुत से तामझाम नहीं बल्कि जरूरत भर कटते पेड़, बढ़ते खेत, खेत से लगी झोपड़ियां, झोपड़ियों से लगी चौपाल, चौपाल से लगा स्कूल, स्कूल से लगा मैदान जहां साप्ताहिक बाज़ार, मेला, खेल-कूद, और सभी वृहत उत्सव मन जाएं
अलमारियां नहीं एक ही अलमारी
हर कमरे में नहीं पूरे घर में एक टी वी
समस्या भी सबकी समाधान की फिक्र भी सबकी
कुल मिलाकर ये सारी बातें उस छोटे से भूखण्ड को स्वर्ग से भी सुंदर बनाती है। फिर ऐसा क्या है कि वहां का माटी पुत्र अपनी जड़ों से कट कर शहर के व्यस्ततम और कोलाहलपूर्ण वातावरण के सबसे निचले पायदान पर काम करने को निकल पड़ता है।
कहीं इसका कारण जिम्मेदार लोगों की गैरजिम्मेदाराना कार्ययोजना तो नहीं यदि ऐसा है तो बंद कमरों में बैठ कर नहीं उनके बीच जा कर उनके हित में कार्ययोजना बनाई जानी चाहिए उन्हें क्या अच्छा लगता है और उनके लिए क्या अच्छा है इन दो बिंदुओं पर संतुलन बनाकर काम करेंगे तो सबके लिए बहुत अच्छा होगा हालत को नजरअंदाज न करके उपाय पर ईमानदारी से काम होना चाहिए इसके लिए गांव को उन सभी सुविधाओं से परिपूर्ण करने का माद्दा जरूरी है सरकार न उन्हें मुफ्त भोजन कराए न भूखों मरने छोड़े उनके श्रम को सही दिशा दे उन्हें गांव में रह कर ही काम करने दें फिर उन्हें वे सारे संसाधन दिए जाएं जिस आकर्षण में लोग शहर जाते हैं।
हमारा भारत कृषिप्रधान देश है। देश का बहुत बड़ा भूखण्ड खेती के काम आता है। यही वह जगह है जिससे पूरे देश को भोजन ही नहीं बहुत कुछ जीवनोपयोगी साधन मिलते हैं। फिर किसानों को उतना फायदा क्यों नहीं मिलता ?
शायद गांवों की शिक्षा व्यवस्था में काफी कुछ बदलाव की जरूरत है। एक तो उन्हें खेती की नई तकनीकों का ज्ञान नहीं हो पाता यदि हो भी जाए तो उसका पर्याप्त लाभ नहीं उठा पाते और सरकार से निकलकर गांव तक के सफर में अधिकांश योजनाएं अपना मूल ढांचा खो चुकी होती हैं। जिस उद्देश्य से कार्ययोजना बनाई गई थी वह बहुत पीछे ही छूट जाती है। इन परिस्थितियों से निकलने के लिए पहले बुनियादी ढांचा बनाएं फिर रंग रोगन की बात करें।
कृषि व्यवस्था में भी बहुत सारे परिवर्तनो की जरूरत है। सबसे पहले तो ग्रामीणों के हित में उनकी सहमति से मजबूत कार्ययोजना तैयार की जाए और फसल में उनका मुनाफा जितना वे साल भर में कमाते हैं उससे दोगुना न सही लेकिन ज्यादा ही हो उनके जरूरत की लगभग सभी चीजें अच्छी मिलें उनके हिस्से के पैसे उनके खाते में जमा हों वे चाहें अनाज रखे या पैसे उनको तय करने दें सरकारी संस्थाएं गठित करें जिसमे योग्यता के अनुरूप पहले तो गांव के ही लोगों का चयन हो उसके बाद कृषि के क्षेत्र में पढ़े युवाओं को यहां रोजगार के अवसर दिए जाएं इसके लिए गांव की जितनी भी भूमि है उसका सीमांकन करके सभी की सहमति पर सरकार द्वारा जलवायु के आधार पर फसल उगाई जाए इससे अलग अलग किसानों की अलग अलग फसल के जगह पर एक ही तरह का अनाज जब बहुत बड़े रकबे में उगाया जाएगा तो मेड़ में लगने वाली जगह बचेगी ट्रेक्टर व अन्य मशीन से काम करने में आसानी होगी और उनकी बोवाई, निंदाई, पैकेजिंग में आसानी रहेगी एक्सपर्ट लोगों की निगरानी में अनुभवी किसानों की सही दिशा में की गई मेहनत और उन्नत बीजों से, उन्नत तकनीक से तैयार अच्छी फसल होगी। निश्चित आबादी के बीच सर्वसुविधायुक्त भवन हो जिसमे उनकी पैदावार को अधिक समय तक रखने के सुरक्षित इंतजाम हों थोक और चिल्हर बिक्री की पर्याप्त व्यवस्था हो, वनोपज, खाद्य संरक्षण, हस्तशिल्प, इत्यादि सभी की बिक्री रखरखाव की समुचित व्यवस्था हो दुनिया के किसी भी कोने में वो अपने प्रोडक्ट पार्सल कर सकें इसकी भी व्यवस्था हो हाईटेक दुकानें बैंक और अन्य सुविधा की चीजें हों जहां सहभागी कार्ड बनाया जाए।
अभी होता ये है कि बढ़ी मुश्किल से तैयार फसल को वह मंडी में जब लाता है तो मजबूरी में बेचना पड़ता है लेनेवाले साहूकारी दिखाते हैं। उनकी दिन रात की मेहनत को खुले आसमान में रख कर खराब होने छोड़ दिया जाता है। यही लापरवाही और लगातार होते घाटे की वजह से लोगों का खेती बड़ी से मोह भंग हो रहा है। जब उसकी मेहनत का मेहनताना पहले से अधिक और स्वाभिमान के साथ मिलेगा तभी तो उन्नत फसल होगी खेत लहलहाऐंगे, कोयल कुकेगी, खेतों में किसान गाएंगे, गांव जी उठेंगे अब तक गांव की फसल शहर बिकने अति थी अब शहर को गांव जाना होगा वो भी उनकी शर्तों पर।
इसी तर्ज पर फल, सब्जियां, वनोपज, कपड़ा, दूध, हस्तकला इत्यादि पर भी ध्यान दिया जा सकता है। सरकार यह सुनिश्चित करे की बाहरी सारे माध्यम ग्रामीणों के सहयोगी हों नियंत्रक नहीं सारे फैसले गांव वालों की सर्वसम्मति से हों साथ ही आजकी शिक्षित युवा पीढ़ी की ऊर्जा उनके साथ साथ उनके लोगों का सम्मान बने।
ऐसा भी नहीं है की अबतक इस ओर कोई काम नहीं किया गया किन्तु अब नए सिरे से सभी योजनाओं के क्रियान्वयन की जरूरत है ताकि कोरोना वायरस की वजह से अपने घर, गांव पहुंचे लोगों की जिंदगी आसान की जा सके प्रत्येक ग्रामीण स्कूल में शाम को प्रशिक्षित ग्रामीणों और सहयोगी द्वारा बच्चों को कुछ कुछ प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए जो उनके रिजल्ट में जुड़े इससे बच्चों को अनुभवी लोगों का बचपन से ही प्रशिक्षण मिलेगा जिससे उनकी दिशा निर्धारित होगी वे खुद को पहचान पाएंगे
नीता झा
बढ़िया विचार ।
जवाब देंहटाएंगांव के लोग मतलब ग्रामीण अत्यंत सरल ,मेहनतकश और सहजीवन पर विश्वास रखते हैं ,, हमारी अर्थव्यवस्था गांव पर भी बहुत टिकी है। अच्छा लिखा नीता। वाह ।👋👋👋🌺🌺🌸🌸🌸🥀🏵️🏵️👌👌👌👍👍
जवाब देंहटाएंजी आशा करती हूं जिम्मेदार लोग देश की रीढ़ यानी ग्रामीण अर्थ व्यवस्था को मजबूत करेंगे पढ़ने के लिए धन्यवाद
जवाब देंहटाएंअति सुंदर लेखनी दीदी
जवाब देंहटाएंगांव का मतलब मेरे लिए खुली एवं शुद्ध हवा बिना मच्छर के घर मिट्टी के घर जहाँ ए०सी० की जरूरत नहीं , गावं में अगर शिक्षा ,स्वास्थ्य ,स्वच्छता एवं रोजगार के अवसर बढ़ाये जायें तो शाखद गांव से शहर की ओर नहीं भागेंगे ।
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