मेरे ये बच्चे - नीता झा


मैं माँ हूं इस लिहाज़ से बच्चों को सोचना, उनके इर्द-गिर्द घूमते, मंडराते उनमें अपने सुख-दुख तलाशते जीवन इतनी तेजी से बीत गया पता ही नहीं चला जब मेरे मातृत्व को और नए-नए नाम मिलने लगे उनकी गरिमा मेरे व्यक्तित्व में दिखने लगी तो लगा जीवन अपनी पूर्णता की ओर बढ़ चला  सुखद रिश्तों का असीम आनन्द यही तो है जीवन की पूर्णता का सुखद अहसास।
    दरअसल बचपन से ही हर जीव में स्नेह की भावना  स्वाभाविक रूप से होती है। जो जीवन के तमाम पड़ावों में अपना स्वरूप बदलती रहती है।
 जब छोटे बच्चे अपने आसपास हो रही घटनाओं से जुड़ते जाते हैं तो वह भी सुख दुख के साथ प्रतिक्रिया देने लगते हैं। बड़ों की पीड़ा पर बरबस ही उनका अपने नन्हे हाथों से सर दबाना ही तो ईश्वर प्रदत्त स्नेहामृत है। 
 जैसे जैसे बच्चे बड़े होते जाते हैं स्नेह व्यक्त करने के तरीके में थोड़ा फ़र्क आने लगता है। लड़कियों में ममत्व झलकता है तो लड़कों में परवाह अपने छोटे भाई बहन, भतीजे- भतीजोयों, भांजे- भांजियों, बहु- दामादों से होता हुआ कब वह स्नेह भाव भाभी माँ, चाची माँ, मासी माँ, बड़ी माँ, सासु माँ, मामी, नानी माँ, दादी माँ के खूबसूरत पड़ावों से गुजरता जाता है पता ही नहीं चलता वैसे प्रायः देखने में आता है बुआ के रिश्ते में बच्चों के साथ माँ नहीं बड़ी बहन वाली मैत्रीपूर्ण स्नेह की प्रचुर मात्रा होती है।
  इन्ही तमाम रिश्तों से जुड़ा- बंधा  रिश्तों का तिलिस्म ही भारतीय संस्कृति की आधारशिला है।
  हर रिश्ते का एक अलग नाम, एक विशिष्ट गरिमा किन्तु केंद्र में स्नेह, ममत्व के सम भाव का अथाह सागर।

नीता झा

टिप्पणियाँ

  1. उत्तर
    1. बेहतरीन सोच से ही बेहतरीन रचना सम्भव है
      वाकई बेहतरीन लेख है

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  2. कितनी अच्छी भाषा और विचारों की सरलता के साथ गहरी बातें।वाह

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  3. मैं समझता हूँ बच्चे के लालन पालन की गाड़ी के दो पहिये है मां की ममता ओर पिता का वात्सल्य,, दोनों की महती आवश्यकता है बच्चे की सर्वांगीण विकास के लिए।

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  4. बेहतरीन सोच से ही बेहतरीन रचना सम्भव है
    वाकई बेहतरीन लेख है

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  5.  मई 2020 को 9:55 pm

    बेहतरीन लेख, दी🌹👌👌👌👌 ।

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