मनुष्य, मदिरा और मौत - नीता झा


कल सुबह से विभन्न माध्यमो से लगातार खबरें बताई और दिखाई जा रही थीं। शराब दुकान खोली गईं, सड़कों पर शराबियों का जमावड़ा, मदिरालयों में उमड़ी भीड़ और भी न जाने कुछ कुछ ऐसे में मन में विचार आया दारू भट्टी कहें या मदिरालय, सस्ती हों या महंगी, देशी हों या अंग्रेजी चाहे कुछ भी हो है तो एल्कोहल ही।
  लोगों को इसकदर जान जोखिम में डाल कर शराब खरीदते देख अजीब लगा पता नहीं इतना सब जान समझ कर भी लोगों को अपने साथ - साथ अपने सम्पर्क में आने वाले उन तमाम जाने अनजाने लोगों की ज़रा सी भी फिक्र नहीं है
   क्या वे भविष्य में होने वाली मौतों की आशंका के मुख्य किरदार बन गए हैं ? 
   क्या उन्होंने अपने जीवन के उन सभी दायित्वों का पालन कर लिया है ! जो सिर्फ और सिर्फ उनके हिस्से आया है ?
   कोई ऐसे कैसे अपने कारण बहुतों की जिंदगी दांव पे लगा सकता है ?
   और सबसे अहम सवाल जहां लोगों को दो वक्त की रोटी बड़ी मुश्किल से मिल रही है वहां शराब के पैसे कहां से आते हैं ?
   या तो घर के समान, जेवर या मुश्किल वक्त के लिए जमा राशि खर्च हो गई होगी या सरकार लोगों को सहायतार्थ दी गई राशि को  उनकी मुट्ठी से निकाल अपने राजस्व में बढ़ोतरी कर रही है? 
   क्या सच में राज्य सरकारों को केंद्र सरकार से अपने कर्मचारियों, अधिकारियों को तनख्वाह देने के लिए इतनी विषम परिस्थिति में शराब बिक्री का प्रस्ताव देना पड़ा ? 
   जिसे केंद्र ने मंजूरी भी दे दी यदि यह मीडिया की ग़लत जानकारी है तो ठीक है अन्यथा ये सच है तो बड़ा शर्मनाक सच है। कोई सरकार कैसे जनता के साथ इतना बड़ा खिलवाड़ कर सकती है
   हर प्रदेश में आपात स्थिति के लिए निर्धारित राशि तो होनी ही चाहिए नही है तो राशि जुटाने के और भी तरीके हो सकते हैं देश जब इतने संकट में है तब हमारे देश के कुछ अरबपति, खरबपतियों को आगे आकर सरकार की मदद करनी चाहिए नेताओं को संकट काल में अपनी मानदेय राशि नहीं लेनी चाहिए अधिकारी भी यदि हो सके तो अपनी तनख्वाह से थोड़ी बहुत राशि  दे सरकार की मदद कर सकते हैं। आम जनता तो हमेशा सहयोग करती है अब खास लोगों को आगे आने की जरूरत है अन्यथा घनी आबादी वाले हमारे देश में कोरोना वायरस की रोकथाम बहुत बड़ी चुनोती होगी।
   बहरहाल कुछ भी हो सकता है। किन्तु सच्चाई सिर्फ और सिर्फ यही है कि महामारी के समय जब रायपुर जैसा रेड जोन संवेदनशील इलाका जहां सभी दिशाओं से लोग चोरी छिपे लगातार आवाजाही कर ही रहे हैं। जब शहर का स्थानीय निवासी संक्रमित हो स्वयं अस्पताल पहुंच गया अपनी जांच करवाने तो डर बढ़ गया उस युवक की जागरूकता तारीफ करने लायक है । वहीं ठीक उसी दिन बजाए यह देखने की ऐसे और कितने लोग हो सकते हैं। शराब दुकान खोली जा रही हैं और शराब बेची जा रही है। लोग जब शराब लेने में नियमों का उलंधन कर रहे हैं वो नशे में कितनी लापरवाही कर सकते हैं इस बात का सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है
   असंख्य प्रश्न जेहन में उठते हैं मेरे ही नहीं सबके जवाब भी हैं पर अधकचरी व्यवस्थाओं के साथ गडमड हो गए हैं। 
   बुरा लगता है हम जैसे लोग हजार सावधानी रख कर भी दूसरों की लापरवाही के कारण परेशानी उठाते हैं साथ ही उन तमाम लोगों की मुश्किलें बढ़ा रहे हैं जो दिन रात कोरोना वायरस के खिलाफ काम कर रहे हैं।
   
  " एक जुट हो  आवाज उठाओ
   पर याद रखो प्रत्यक्ष नहीं तुम
    वैचारिक सहभागिता दिखाओ
   रहो अपने घरों में सपरिवार सुरक्षित
   करो उपाय कोरोना जीवन बचाने के 
       
               नीता झा

टिप्पणियाँ

  1. कोरोणा संक्रमण से बचने हेतु हर सम्भव प्रयास किए जाने चाहिए,,,,,
    बहुत अच्छी लेख नीता,,,,
    लखते रहो ,,,,
    ऊंचाइयों मे पहुचएगी,,,

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  2. बहुत सही सार्थक विचार नीता जी बधाई हो,,,

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  3. अत्यंत उपयोगी और सामरिक रचना।

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  4. बहुत समसामदिक लेख। बहुत अच्छे से विवरणात्मक चित्रण किया है।

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