युवराज सिद्धार्थ से बुद्ध तक - नीता झा
2500 वर्ष पहले एक व्यक्ति का अपना सारा सुख वैभव त्याग के सन्यास लेने का प्रण करना और अपना पूरा जीवन जनकल्याण हेतु समर्पित करना कैसा रहा होगा ?
उनके माता-पिता, सगे- सम्बन्धियों ने कैसी- कैसी प्रतिक्रियाएं दी होंगीं ?
जब उनकी पत्नी रानी यशोधरा ने उन्हें पुकारा होगा वो कितने चट्टान से भी कठोर मनोबलवाले व्यक्ति होंगे जिन्होंने सहर्ष ही सन्यास का वरण किया होगा ?
कहते हैं रानी यशोधरा ने उनके सन्यास मार्ग में कभी बाधा नहीं डाली बल्कि बाद में उनके परिवार ने भी सन्यासी का जीवन अपनाया और युगों युगों तक सारी दुनिया को शांति का मार्ग दिखाया।
जाती-धर्म, देश- काल और आडम्बर से रहित आत्मबल से अलंकृत भगवान बुद्ध का मन में ध्यान आते ही एक सौम्य, आभामंडल से युक्त वात्सल्यमयी निर्मल छवि उभरती है। बुद्ध जिन्होंने युवराज सिद्धार्थ गौतम से बुद्ध तक के दुर्गम मार्ग का चयन किया और अपने राजसी वैभव, सुखद वैवाहिक जीवन, मित्रवत पत्नी पुत्र को त्याग कर सन्यासी बने।
हर किसी के लिए आसान नहीं होता अपने आपको समाप्त कर बुद्ध होना पर वे उसी मार्ग के पथिक थे। उन्होंने लोगों को अपना अनुयायी नहीं बनाया बल्कि लोग स्वंय उनसे जुड़ते गए।उन्होंने लोगों को अपनी बुराइयों का त्याग कर अहिंसा के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी गृहस्थ जीवन में भी सात्विकता पूर्ण, दयाभाव का जीवन जीने प्रेरित किया उन्होंने सभी को सम भाव में देखना सिखाया।
बाहरी आडम्बरों के बजाए आध्यात्मिक विषय पर गरिमामयी जीवन यात्रा की और दुनियां को यह सन्देश दिया कि इंसान को जीवन में हमेशा सीखते रहना चाहिए, अपनी विद्या को जनकल्याण में लगाना चाहिए, लोगों को अच्छे बुरे का ज्ञान कराकर उनके विवेक पर भरोसा करना चाहिए, हिंसा और युद्ध का जवाब हिंसा और युद्ध नहीं होना चाहिए युद्ध किसी समस्या का हल नही हो सकता। जब सम्पूर्ण देश छोटे बड़े राज्यों में विभक्त था और हर राज्य अपनी सीमाएं बढ़ाने युद्ध को आमादा था उस समय गौतम बुद्ध ने सभी राजाओं के बीच शत्रुता को खत्म कर मैत्री बढ़ाया उन्हें धैर्य पूर्वक युद्ध के नुकसान और मैत्री के सुख से अवगत कराया उन्होंने सम्पूर्ण जगत को यह समझाया कि जातिगत धर्म नहीं मानवता सबसे बड़ा धर्म है।
उनके विचरों की आज भी उतनी ही आवश्यक है जितनी उस समय रही होगी कालखंड चाहे कोई भी हो विचारों की उत्कृष्टता का हमेशा अपना महत्व होता हमे बुरे से बुरे समय में भी अपनी अच्छाईयों का साथ नहीं छोड़ना चाहिए परिस्थितियों को बदलने का प्रयास करना चाहिए और बुराई से स्वंय भी दूर रह लोगों को भी दुर रहने की प्रेरणा देना चाहिए।
ध्यान साधना ने बुद्ध के बुद्धत्व को बल प्रदान किया ध्यान साधना से मन शांत होता है। एकाग्रता बढ़ती है यही कारण है आज भी योग, ध्यान जैसी हमारे ऋषियों की महान खोजों ने देश की जड़ें गहरे तक जमा रखी हैं।
बार बार हो रहे विदेशी आक्रमणों और विदेशियों द्वारा भारत को गुलाम बना देश को बर्बाद करने के सैकड़ों सालों के प्रयास के बाद भी हम यदि अभी भी अपनी सभ्यता, संस्कृति के प्रति आशान्वित और गर्वित है तो वो बुद्ध जैसे सभी महात्माओं की कृपा है।
सभी महान विचारकों , संतों, देशभक्तों को शत शत नमन
नीता झा
भगवान बुद्ध के बारे बहुत विस्तृत जानकारी
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लेख! आज गौतम बुद्ध को स्मरण करने का दिन है,, बुद्ध का जन्म यकायक नहीं हो गया , सतत शुद्धिकरण के मार्ग पर चलते चलते कई जन्मों के अज्ञान ,अहंकार, विकार ,कलुषता को शनैः शनैः को जीतते जीतते वे राजकुमार सिद्धार्थ से भगवान बुद्ध बने। प्रणाम। उनका सच्चा अनुसरण अपने अंतःकरण को निष्कलुष,निष्पाप निर्विकार बना सकते हैं।
जवाब देंहटाएंजी धन्यवाद भगवान बुद्ध के विचारों से मैं शुरू से ही बहुत प्रभावित रही हूं कुछ तथ्य अस्पष्ट से हैं उनके जीवन को ले कर किन्तु विचार आज
हटाएंभी उतने ही प्रासंगिक