वह अनायास ही चला गया - नीता झा
वैधव्य की गवाह गलियां
गुमसुम बड़ी ही हो रही हैं
माँ की आंखों सी मजबूर
मन ही मन वो रो रही हैं
सुख चुके आंसू सी हरियाली
गलियों से झरती जा रही है
तपती दोपहरी सी दाहक
सवाल हजारों लिए पड़ी है
मयखानों संग सरकार चलती
मरघट सी हर गलियां हुई हैं
मय की बाढ़ में बहता यौवन
नाहक ही संसार छोड़ गया
यश कोई ना बना अल्पायु को
अपयश लिए ही चला गया
अपने पीछे रोते परिजन और
कर्तव्यों के अम्बर छोड़ गया
टूटे सपनो के दंश यादों में रख
वह अनायास ही चला गया
नीता झा
Bahut sundar 👌👌👌
जवाब देंहटाएंV. 👏👍👍
जवाब देंहटाएंबटुत मार्मिक एवं तथ्य परक कविता
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