अरसा बीत गया तुमसे यूं मिले -नीता झा
सुबह एकसाथ चाय की चुस्की
साथ सारी दिनचर्या निबटाना
वो दोपहरी में मिल मटर छिले
अरसा बीत गया तुमसे यूं मिले
क्या पकेगा पर गम्भीर चिंतन
टहलने के साथ बेतकल्लुफी
साथ रविवार के काम निपटा
सबके साथ खूब घूमना-खाना
अरसा बीत गया तुमसे यूं मिले
किसकी शादी में क्या पहने
कौन कौन क्या रस्म निभाए
कौन घर कौन बाहर सम्हाले
इसपर सुविधा के साथ चले
अरसा बीत गया तुमसे यूं मिले
अपने कमरे से निकल झट से
तुम तक बेखटके पहुँच जाना
बे-फ़िक्री से बैठक लगाकर
और बिना भूमिका कुछ भी कहे
अरसा बीत गया तुमसे यूं मिले
मायके की सारी अनकही बातें
मुस्कान और आंसू से समझे
फिर बड़े आत्मीय अंदाज़ में
उन्हें अपना समझ सुलझाए
अरसा बीत गया तुमसे यूं मिले
मायका छोड़ आए जिस घर
उसके कोने- कोने को सँवारे
अपने साथ सबको पिरोए
कच्चा पक्का साथ रसोई बनाए
अरसा बीत गया तुमसे यूं मिले
कभी मित्रवत कभी प्रतिद्वंदी तो
कभी पीड़ा में उदास हो जाना
नमक, चीनी के संतुलित रिश्ते
और उन्हें सहेज सहज खुश हुए
अरसा बीत गया तुमसे यूं मिले
ससुराल के तरीके साथ सीख
पुरानी यादों को दिल में दबाए
नए घर को अपना बनाए हुएI
अरसा बीत गया तुमसे यूँ मिले
हां क्या तुम्हे भी हूं याद मैं
ऐसे ही खट्टे-मीठे लम्हों में
वो नादान, मासूम गलतियां
वो खूबसूरत सी मस्तियाँ
अकेले बनाते बढ़िया पकवान
साथ बनाए बिगड़े पकवान
याद आते हैं क्या तुम्हे भी
साथ बिताए नवजीवन के मीठे पल
मेरी प्यारी जेठानी, देवरानी के लिए
नीता झा
रचना अच्छी है
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंExcellent👌👌👌👌❣
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद
हटाएं