रिश्तों के वेंटिलेटर आने लगे दूर देश से - नीता झा भाग-2


  
"रिश्तों के वेंटिलेटर आने लगे दूर देश से"  भाग-2  
       उसने प्रणाम करके फोन रख दिया। वह उदास हो गया था। आज मम्मी- पापा की बहुत याद आ रही थी। मन भारी हो गया तो वह बालकनी में बैठ गया सोचने लगा कुछ तो करना ही पड़ेगा ऐसे काम नहीं चलेगा सब कितने मजे से चल रहा था उसकी विदेश में  शानदार नोकरी, बढ़िया घर सुंदर सुशील बीवी, प्यारा सा बच्चा भगवान ने उसके सारे सपने पूरे किए। क्या सच में भगवान ने यूँ ही सपने पूरे किये... नहीं, उसकी हर उपलब्धि में उससे ज्यादा मेहनत तो पापा-मम्मी की है। उसे अच्छे से याद है। कैसे उनलोगों ने छोटे से शहर में रहकर भी पापा की टीचिंग जॉब में सबकुछ मैनेज किया था उसकी फ़ीस, खाना, पहनना, संस्कार हर चीज में विशेष ध्यान दिया, वीनू ने भी उनकी मेहनत की हमेशा कदर की वही उनका बेटा भी है, और बेटी भी इकलौती संतान की दोहरी जिम्मेदारी वह बखूबी समझता था। इसी कारण पापा के साथ बाहर के कामों में लग जाता और मम्मी के साथ घर में उनका हाथ बटाया करता था। उसे पता था उसको दी जाने वाली हर सुविधा के लिए पापा- मम्मी को कुछ न कुछ अलग से व्यवस्था करनी पड़ती थी। जिसे उन्होंने हमेशा बड़े प्यार से निभाया अब उसकी बारी आई तो वह उनसे इतनी दूर आ गया हैं कि उनसे मिलना भी मुश्किल हो गया है। यह कैसी लालच की जेल में उसने खुद को बंद कर डाला जहां से निकलना मुश्किल हो गया है।
  जब कुछ नहीं था तब हमेशा सोचता था आज पापा-मम्मी  उसके लिए कितनी मेहनत कर रहे हैं वो जब नोकरी करेगा दोनों को बहुत आराम से रखेगा पापा को ट्यूशन से और मम्मी को घर के अलावा जो टिफिन कभी सिलाई जैसे काम करने पड़ते हैं;सबसे छुट्टी करवाएगा उसने काफी हद तक ऐसा किया भी पापा के रिटायरमेंट के बाद दोनों को अपने साथ ले गया था। वीनू चाहता था वे लोग हमेशा के लिए उसके साथ ही रहें लेकिन वो लोग ज्यादा दिनों तक नई जगह में बोर हो जाते थे। विदेशी हवा उन्हें ज्यादा रास भी नहीं आती थी और वीनू चाहकर भी ज्यादा समय तक उनके पास रह नही पाता था फिर जब वीनू की शादी हुई घर परिवार की जिम्मेदारियों में पहले की तरह ध्यान नहीं दे पाता था पर पापा-मम्मी बहुत खुश थे अपने बहु बेटे की खुशहाल गृहस्थी देख कर  रुद्र के जन्म के बाद पहली बार पूरे दो महीने के लिए रुके थे। बहुत अच्छा लगता था वीनू आश्वस्त था की अब रुद्र का प्यार उन्हें यहां रोक लेगा पर कुछ समय बाद उन्हें  घर की याद आने लगी सही भी था सारा कुछ छोड़ कर आना सोचने में आसान होता है। करना बहुत मुश्कि "हमारा जब भी मन होगा आते रहेंगे"के वादे के साथ वो लौट आए थे। 
                          नीता झा
                                               क्रमशः

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