बरगद - नीता झा

बरगद भी कभी नन्ही पौध हुआ करता

नन्ही नन्ही शाखों पर नर्म पत्तों वाला।

हल्की हवा में भी जो डगमगाने लगे,

 सबको अपनी कोमलता से लुभाता।

 आज उलझी-उलझी जटाओं वाला,

 अपनी विशालता से अचंभित करता।

 लोगों को बड़ी घनी छांव देने वाला,

 कभी धूप में झुलस मुरझाया करता।

 मेरे माता-पिता ने क्या इससे सीखा?

 या उन्हें देख यह यूँ विशालकाय हुआ,

 अम्मा कहतीं सात पौधे साथ लगाए

 ताकि सबकी एक साथ ही पूजा करूँ।

 मुझे याद है गिनते थे पहले हम उन्हें,

 बाद बढ़ सब एक हो गए थे गूंथे-गूंथे

 और हम उनके बच्चे सारे साथ बढ़े,

 अब सारे अपनी दुनियां में रम गए।

 सब अपनी खूबियों से निखरते हुए,

 अस्तित्व अपने अपने गढ़ने में लगे।

                 नीता झा
        

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