याद आती हो तुम वैशाली - नीता झा
उसे देख याद आती हो तुम वैशाली...
भारी बैग उठाई थकी हुई बेचारी,
मुरझाई याद आती हो तुम वैशाली...
ओस सूखे, पत्ते देखूं कहीं जब,
तेज़ गर्मी में स्कूल जाती हुई
दुखी तुम याद आती हो वैशाली...
खाने बैठूं जब अकेले मैं भूखा
रूठी होकर मुझसे जब तुम
रोती सुबकती सोती हो ऐसे ही,
भूखी तुम याद आती हो वैशाली...
जब कभी छोड़ता हूं तुम्हे मैं,
पकड़ लेती हो पांव मेरे कस कर!
साथ आने बिगड़ती, ज़िद करती
गुस्साती याद आती हो तुम वैशाली...
जब कभी देखता हूं किसीको
भाग कर फेरी वाले को बुलाते
ठुमकती तुम याद आती हो वैशाली...
दूर हूं बहुत तुमसे खातिर तुम्हारी
बातें जब करता हूं तुमसे लम्बी
दूरी हमारे बीच बढ़ती देख
उदास तुम याद आती हो वैशाली...
आना चाहता हूं सब छोड़ कर,
तुम्हे संवारना चाहता हूं रोज!
सुनानी हैं कहानियां बहुत सी
धुमाना है कंधे में बिठाकर तुम्हे
आँखें नम से याद आती हो वैशाली
आना चाहता हूं छोड़ सब यहां का
हमेशा के लिए पास तुम सबके
क्या तुम भी चाहती हो मुझे इतना
के साथ रहने के बदले छोड़ पाओगी
बड़ा घर, बड़ी गाड़ी और महंगा स्कूल?
नीता झा
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