दूर देश से आते रिश्तों के वेंटिलेटर - नीता झा



"मम्मी कोरियर वाला आएगा, आप तब तक सामने कमरे में पहुंचो... थोड़ी जल्दी चलना मेरी माँ... वो चला न जाए पिछली बार की तरह"
  वीनू का फोन आया था लीना का चेहरा उतर गया उसने बुझी अवाज़ में बस इतना ही कहा-" अब क्या भेज रहा है? हमलोगों को कुछ नहीं चाहिए" और मोबाइल मनोज के सीने पर रख कर उठने का उपक्रम करने लगी।
  उठते - उठते उसकी आह निकल गई, घुटना बहुत दुख रहा था। सब गाउन भी ढीले हो गए थे उठते-बैठते कभी पैरों में कभी दरवाजे में फंसते रहते वो लगभग घिसटती हुई बाथरूम की तरफ जाते हुए जोर से बोलीं -"मनोज वीनू फिर कुछ भेज रहा है!उससे कह दो, हमे कुछ नहीं चाहिए" और जोर से बाथरूम का दरवाजा बंद किया। वीनू जनता था पापा ने पिछले 6 महीने से कुछ कहा ही नहीं है; उन्हें लकवा जो हुआ है। बात करने के नाम पर कुछ अस्फुट ध्वनि ही बड़ी मुश्किल से निकलती है। शब्द नहीं फिर भी वह उनसे हालचाल पूछता रहा वो कह न सकते हों पर सुनते तो हैं।वीनू उनके आंसुओं को महसूस कर पा रहा था। मोबाइल में घरघराहट की आवाज बढ़ने लगी... शायद पापा बोलने या रोने लगे थे। उसने प्रणाम करके फोन रख दिया।
  वह उदास हो गया था।
                            क्रमशः

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