हरियाली का हुआ आगमन - नीता झा
झूम उठे सारे जड़-चेतन।
प्रकृति का हुआ सिंगार,
धरती भी मना रही त्योहार.....
जी हां लम्बी रूक्षता के बाद होती बारिश बड़ी आनन्ददायक होती है। मौसम में घुलती नमी, हवाओं में समाई मिट्टी की सोंधी खुशबू और बारिश में सराबोर पत्तों का हवा संग कम्पित हो नृत्य करना बड़ा सुकून देता है।
बरसात का आना यानी धरती का हरित श्रंगार उसपे खूबसूरती को चार चन्द लगाते रंग बिरंगे फूलों की खुशबूदार अदाकारी मन को बड़ा सुकून देती हैं। यह कहना अतिश्योक्ति न होगी की बारिश और हरियाली एक दूसरे के पूरक हैं। दोनों का आनन्द चाहिए तो इनसे मित्रता करनी होगी स्वार्थपरक नहीं निःस्वार्थ मित्रता ताकि प्रकृति का संतुलन बना रहे हम प्रकृति प्रदत्त जीव हैं। जब भी इंसन ने खुद को प्रकृति से बड़ा समझ उसने बड़े अच्छे से समझाया लगातार समझा भी रही है। जब नहीं समझते या समझकर भी नासमझी करते हैं तब होती है। प्राकृतिक आपदा जो काफी कुछ कभी-कभी सारा कुछ तहस-नहस करके रख देती है। वहीं यदि हम अपनी हद में रहते हैं तो वही प्रकृति माँ बनकर हमारा पोषण करती है।
नीता झा
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