तुम याद आती हो वैशाली - नीता झा

नन्हे नन्हे पौधों पर जमी धूल 
 देख याद आती हो तुम वैशाली
भारी बैग उठाई थकी हुई बेचारी
ओस का सुखना पत्तों पर जल्दी
याद आती रोती बस में होतीं तुम
हमारे पास आने रोती, मचलती
अनसुनी होने पर उदास हो सोती
जब भी कमरे के बाहर देखता हूं
नन्हे-नन्हे बच्चों को खेलते हुए
भाग कर फेरीवाले को बुलाते
देख याद आती हो तुम वैशाली
तुम्हारी फोटो सीने से लगाए
बात कर लेता हूं तुमसे फोन में
हां वैशाली आंखे नम हैं अब भी
आना चाहता हूं सब छोड़ कर
हमेशा के लिए पास तुम सबके
क्या तुम भी चाहती हो मुझे इतना
के साथ रहने के बदले छोड़ पाओगी
बड़ा घर, बड़ी गाड़ी और महंगा स्कूल?
                  नीता झा

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