"रिश्तों के वेंटिलेटर...... नीता झा भाग - 6

                                        
                                      
   छोटी सी नई नवेली दुल्हन से कब कमला दीदी नाती- पोतों वाली हो गई और कब वो परिवार की सदस्य सी बन गई पता ही नहीं चला, भरा- पूरा परिवार है। खाने- पीने की कोई तकलीफ नहीं, पर एक रिश्ता सा बन गया है। तो चली आता है अब भी काम में।
   "एकबार बाढ़ की वजह से कमला दीदी का भाई राखी में नहीं आ पाया....
   तब उसने तेरे पापा को जो राखी बांधी आज भी पहली राखी उसी की होती है। बुआ लोग भी उसे बहुत मानते हैं। तभी तो तीजा की साड़ियों में उसकी भी साड़ी होती है। बताते बताते मम्मी अक्सर भावुक हो जातीं।
   इतने में कॉलबेल बजी शायद साहू जी होंगे अंकल के क्लिनिक से वीनू ने अंदाज लगाया के फेमिली डॉ. मिश्र से वीनू ने एक अटेंडर रखने की बात कही थी। उन्होंने साहू जी को भिजवाया वह केवल सुबह ही आकर सारा कुछ कर के चले जाते। फिर कमला दीदी दोपहर तक रह कर चली जाती थीं उसके बाद मम्मी को अकेले ही सब मैनेज करना पड़ता था। ऐसे में उनको उठाना,बैठना मुश्किल हो गया था।
   वीनू ने पापा की सारी रिपोर्ट देखी और उनकी रिकवरी के लिए क्या करना चाहिए इस पर डॉ. से पूरी जानकारी ले ली उनसे बात करके वीनू आश्वस्त हो गया था की पापा को जब सुबह सुबह अटैक आया था मम्मी ने बिना देर किए डॉअंकल को फोन कर दिया था उनके आने तक अंकल के बताए उपाय करती रहीं और समय पर मीले सही इलाज के कारण काफी कुछ सम्भल ही गया ।डॉ. अंकल की बातों से इतना तो समझ गया था की अब उसे करना क्या है।
   उसने पापा मम्मी दोनों के लिए बहुत कुछ प्लान कर रखा था फोन पर लगातार सुमि, रजत भैया और अपने दोस्तों से बातें हो रही थीं। जैसे ही होमआइसोलेशन पूरा हुआ वो सीधे पापा के पास दौड़ा चला गया उसे देखते ही पापा की आंखों से झर-झर आंसू गिरने लगे बहुत देर तक वीनू उनसे लिपटा रहा शब्द मौन थे पर भावनाएं संवाद कर रही थीं।
    पापा काफी कमजोर, बुजुर्ग और हताश लग रहे थे। वीनू ने इतनी बुरी हालत की कभी कल्पना नहीं की थी। उसके आंसू रुक नहीं रहे थे। मम्मी भी काफी थकी- थकी और हताश लग रही थीं। वह इन सभी परिस्थितियों के लिए कहीं न कहीं खुद को जिम्मेदार समझ रहा था। मम्मी ने उसे अपने सीने से लगा कर शांत कराया। काफी देर तक तीनो बिना कुछ कहे रोते रहे कोई किसी को भी चुप कराने की हालत में नहीं था। बरसों की पीड़ा आँखों के रास्ते आंसू बन पिघल रही थी।
    मन बड़ा हल्का हो गया था और वीनू का निश्चय दृढ़ हो गया था वह उठा और मुह हाथ धोकर रसोई गया पापा मम्मी के लिए पानी लेने।
    मम्मी भी उसके पीछे पीछे आईं-" तुमलोग चाय पिओगे" "हाँ चाय तो पिएंगे...पर आप लोग मुह हाथ धोइये आज चाय मैं बनाता हूँ"
    "ठीक है..वैसे भी तुम्हारे हाथों की चाय पिये बहुत दिन हो गए"
    वीनू तीनो के लिए बढ़िया अदरक, इलायची वाली चाय लेकर आया तबतक मम्मी भी मुह हाथ धोकर पापा को ठीक कर चुकी थीं। पापा लेटेे हुए थे मम्मी धीरे-धीरे उनके मुह में चम्मच से चाय डाल रही थीं। चाय न गिरे करके उन्होंने नेपकिन जरूर लगाई थी लेकिन चाय गिर ही जाती।
    आप हटिये मैं पहले पापा को बैठा देता हूँ फिर मजे से चाय पिलाऊंगा.... क्यों पापा?"
    और वो उन्हें सम्हाल कर बिठाने के बाद चाय पिलाने लगा। फिर बोला - " मम्मी जरा पापा को स्पोर्ट देकर बैठिए मैं खिड़की खोल देता हूँ।"
    वीनू ने खिड़की खोलते हुए कहा"- लग रहा है बहुत दिनों से ये खिड़की बन्द थी।"
    "हाँ बरसात में जाम हो जाती है। फिर मुझसे बन्द करना नहीं हो पाता....
    अच्छा लगा बेटू तूने इसे खोल दिया बहुत अच्छी हवा आती है...
    "हां याद है जब मैं छोटा था आप यहीं बिठाकर आम के पेड़ में दुनिया भर के पक्षियों का डेरा लगवाते थे....
    और देखो तो एक भी नहीं हा हा हा....
    दोनों खिलखिला कर हंस दिए"
    मम्मी के मुह से अपने लिए बेटू सुनकर अच्छा लगा वीनू ने पापा का मुह खिड़की की तरफ कर दिया उनके चेहरे में मुस्कुराहट आ गई।
    पापा मम्मी ने घर के सामने के पूरे पांच एकड़ के प्लॉट के किनारे किनारे काफी फलदार पेड़ लगा रखे थे। कुछ पेड़ तो दादा- दादी के समय के भी थे बड़ी ताजी हवा आती है। रिटायरमेंट के बाद पापा ने पूरे प्लाट में बाउंड्रीवाल लगवा दिया था। ताकि बाकी बची जमीन में कुछ बागवानी की जा सके। बाउंड्री बनने के बाद प्लॉट और भी बड़ा लग रहा था।
              नीता झा
                          क्रमशः

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