कुछ ऐसे भी सोचें - नीता झा



हर किसी  के लिए त्योहारों का अपना ही महत्व है। त्योहार का विचार आते ही मिले , जुले भाव जेहन  में चलते हैं नए कपड़े- गहने, स्वादिष्ट पकवान, पूजा - अनुष्ठान, साज सजावट फिर सभी अपनो से मेल- मुलाक़ात....
    ये हैं; आनन्ददायक पक्ष इसके साथ ही हम देखें तो इन सभी आयोजनों को सम्पन्न करने में लगने वाली शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक और आर्थिक ऊर्जा के समायोजन की...
   इनमें संतुलन बनाना कभी कभी मुश्किल होने लगता है। ऐसे में मन मे बड़ी खिन्नता आने लगती है। क्यूंकि बड़ी जोड़- तोड़ के बाद यदि कोई परिवार दीपावली के लिए पैसे जमा करता है इस दीपावली गाड़ी खरीदी जाए और अचानक किसी की तबियत खराब हो जाए या किसी कमरे की दीवार मरम्मत मांग रही हो ऐसे में मायूसी तो होगी ही।
     जब दुख हो तो ये हमेशा याद रखें इंसान की प्रवृत्ति खुशियां बांटने की होती है। हम हंसते चेहरे देखकर खुश होते हैं।साथ ही जब किसी से मिलते हैं हमारी कोशिश होती है हम सभी- शिष्ट दिखे और व्यवहार करें यानी हम खुद के साथ अपने अपनो की खुशियों की भी परवाह करते हैं। यही इंसान का मूल स्वभाव होता है। फिर बजट हमारा हमारे अपनो का और समस्या भी हमारी या हमारे अपनो की तो प्रथमिलताएँ भी आपकी और आपके अपनो की होनी चाहिए तभी वास्तविक खुशियां आएंगी।
       जबसे कोरोना वायरस का लाइलाज प्रकोप चल रहा है। हमारे यहां शादियों और त्योहारों का भी समय साथ ही साथ चल रहा है। ऐसे में हरकोई अपने पूर्वनिर्धारित रीतियों के अनुसार कोई भी काम नहीं कर पा रहे हैं। जिससे बड़े समारोहों की बुकिंग या सामानों की ख़रीददारी इत्यादि जिन्होंने की हुई थी, उन्हें काफी नुकसान भी हुआ लेकिन ये भी सही है आप और आपके अपने स्वस्थ रहेंगे तो ऐसे आनन्द के पल हर वर्ष आएंगे ही फिर मना लेंगे। रही बात विवाह इत्यादि की तो आप निर्धारित संख्या और नियमो को ध्यान में रख कर विवाह संपन्न कराएं या उचित समय का इंतजार करें। बस जो भी हो ये सारे खुशियों के पल हैं खुशियां ही बांटें तो सारा जीवन अच्छी यादों के साथ जिएंगे।
              नीता झा

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