जड़ों से जोड़ती ये बारिश - नीता झा
लगातार हो रही बारिश और नन्ही बूंदों का आंगन में अनवरत चलता नृत्य बड़ा ही मनमोहक लगता है। लम्बे समय से चली आ रही उमस से मुक्त करता ठंडक का अहसास कराता बरसाती झड़ियों का संगीत बड़ा सुहाना लगता है। अपने घर की खिड़की के पास बैठ कर गमलों में उछल कूद मचाती आंगन में थिरकती बारिश की बूंदें बरबस ही मुझे मेरे बचपन मे ले जाती हैं। आम, बेल, कटहल, अमरूद, जामुन, मेहंदी के वृक्षों, झाड़ियों के साथ ही कई तरह के फलों सब्जियोऔर फूलों से भरा- पूरा घर -आंगन ऐसा लगता है जैसे प्रकृति माता बारिश में सराबोर मंद- मंद मुस्कुराती आनन्दित हो झूम रही हों।
सुकोमल लताओं का मचल- मचल कर घर के ऊपर चढ़ना देख ऐसा लगता है मानो नन्ही बच्ची माता-पिता की गोद मे चढ़ने को लालायित हो रही हो।
प्रकृति के अद्भुत विशिष्टता से बड़ी अचंभित होती हूँ जब देखती हूं बारिश वही, मौसम वही, और जमीन वही पर हरेक पौधे, झाड़ियों, लताओं, वृक्षों की सुगंध और खूबसूरती की विविधता का अपना ही आनन्द होता है। कतारबद्ध हों या आपस मे गूंथे जुड़े पर हर किसी की अपनी विशिष्ट पहचान हमेशा बनी रहती है। चाहे वह जहां भी हों।
अपने ऊपरी मंजिल के कमरे से जब बाहर नजर दौड़ती थी दूर- दूर तक फैली हरियाली की घनी चादर में मनभावन फूलों का प्राकृतिक कशीदा मेरे मन मस्तिष्क में इतने गहरे समाया है कि जब अपने गांव की बारिश याद करती हूं। अरबी के बाहें फैलाए पत्तों का भागती- दौड़ती बूंदों को रोकने का भरसक प्रयास मानो नटखट बच्चे को मिट्टी से खेलने से रोकती माँ हो।
हल्की बारिश में यूँ ही निरूद्देश्य भैया के साथ घूमना बारिश से झुकी लताओं को टहनियों पर चढ़ाना, हर फूल पौधे को सूंघ कर देखना कहीं बारिश ने इसकी मोहक खुशबू न बहा ली फिर उसकी रची - बसी खुशबू में आनन्दित होना।
उफनते नदी-तालाब की विकरालता के विषय मे सुनकर देखने की जिद पर अम्मा का गरमागरम भजिया का प्रलोभन पा अम्मा से पूछना कुछ लाना तो नहीं है। जल्दी- जल्दी प्लेट में आम की करोई चटनी डिजाइन से सजाकर गर्म भलजीए का बेसब्री से इंतजार करना फिर भजिया और अंताक्षरी का लंबा दौर याद आता है। जब हम गाने भूल जाते तो अम्मा-पिताजी का भी याद दिलाने के बहाने हमारे साथ अंताक्षरी खेलना याद आता है। अभी भी उनकी आवाज़ में गाए पुराने गाने कानो में गूंजते हैं।
हम अपनी जन्मभूमि से चाहे कितनी भी दूर चले जाएं हमारी मानसिक डोर अपने पैतृक गांव में कहीं बहुत गहरे जमी होती है किसी पुष्पलता की जड़ों सी। हमे पुष्पित, पल्लवित करती जीवंत रस से सराबोर।
नीता झा
नीता ,तुम जब ऐसे लिखती हो तो मुझे वो मासूम सी कम बोलने वाली एक लड़की याद आती है,, जो लामनी से अपने बड़ी मामी के घर 'आती थी
जवाब देंहटाएंवो लड़की आज भी कहीं मुझमें बसती है मेरी सोच बनकर
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