रिश्तों के वेंटिलेटर…..नीता झा - अंतिम भाग
वीनू से सभी लोगों को बहुत उम्मीद थी। लेकिन कोई कह नहीं रहा था। वो तो कमला दीदी का निश्छल प्रेम था की उन्होंने वीनू को वो तस्वीर दिखाई जो अबतक उसकी नजरों से ओझल थी।
जबसे वीनू आया था दिन में एक दो बार वह रुद्र की पापा से बात करवाता था। सुरु में रुद्र को देखकर पापा बहुत खुश हुए लेकिन उनको देखकर रुद्र सहम गया था। उसके दादाजी तो उसके बेस्ट फ्रेंड हैं जो उसके साथ खेलते हैं, गार्डन में उसे झूला झूलाते हैं। वो हमेशा पंजा लड़ाने में रुद्र से हार जाते हैं लेकिन रुद्र से फ़ास्ट दौड़ते हैं। और वो और दादी मिलकर उसे ड्रॉइंग, अपने देश के यूनिक गेम्स सब सिखाते हैं। पर अभी दादाजी को क्या हो गया ?
मम्मा क्या हम कभी खेल नहीं पाएंगे?
उसकी बातें सुनकर पापा का चेहरा उतर गया था। सब चिंतित हो गए। मम्मी ने बात सम्हाली। "अरे जूनियर ...दादाजी को ज्यादा कुछ नहीं हुआ है। वो जल्दी ही ठीक हो जाएंगे, तुम्हारे साथ पंजा लड़ाने, तुम पूरी तैयारी से रहना, अब जब भी मिलेंगें दादाजी तुमसे जीतने की तैयारी कर रहे हैं...
" तुम भी खूब बॉडी बनाओ मम्मी से कहकर बढ़िया खूब सारे फल, सलाद खाओ ....
जी मम्मी हमारा रुद्र रोज पूरा दूध भी फिनिश करता है और आप लोगों ने जो सिखाया था ना.... क्या है रुद्र?
ताड़ासन मम्मा...
" ऐसे करते हैं देखो" उससे मैं बहुत बड़ा हो जाऊंगा, मैं तो रोज करता हूँ ,सबसे बड़ा हो जाऊंगा" कहकर वह कमरे में भागने लगा और सारा माहौल हल्का हो गया।
वीनू के आने से मम्मी भी काफी खुज़ह रहने लगी अब उनकी रसोई में फिर से जगह की कमी होने लगी अब फिर से सुबह की पहली किरण का स्वागत खुली खिड़कियों से आती भजन की आवाज से होने लगी और आंगन के गमलों में कमला दीदी की मदद से रंग लगाती मम्मी प्लान कर रही थीं किसमे, कौन से फूल लगाएं और किचन गार्डन में क्या-क्या लगाना है। अब वीनू रोज सुबह पापा को व्हील चेयर में बिठा कर बाहर धूप में घुमाने ले जाता बाहर की खुली हवा अमरूद के पेड़ के नीचे चबूतरे में बैठ कर सब सुबह की चाय पीते हंसी मजाक करते पापा की अस्पष्ट बातें भी समझ आने लगीं अब उनके चेहरे में ठीक होने की उम्मीद साफ झलकती थी। यहीं बैठ कर सबसे फोन पर बातें भी हो जाया करतीं ऐसे तो मिलना हो नहीं सकता।
उस दिन बातों ही बातों में रजत भैया ने जब कहा-" यार वीनू समझ में नहीं आ रहा है क्या करूँ इधर हमलोग सब लॉकडाउन लगते ही यहां आ गए बच्चों के स्कूल भी बन्द हैं खैर ऑनलाइन क्लासेस चल तो रही है मेरी जॉब भी ऑनलाइन ही है पर सेलरी कम हो गई कम्पनी का भी नुकसान हो रहा है। वहां घर का किराया भी देना ही है। समझ में नहीं आ रहा है क्या करूँ।
आप चिंता क्यों करते हैं। मैं किस दिन काम आऊंगा...
अरे यार तू समझा नहीं भाई अभी तो सब ठीक है। लेकिन भविष्य में समझ नहीं आता क्या करूँ पुणे में पैकेज अच्छा है पर मैनेज करते करते सब बराबर हो जाता है। यहां सब है पापा मम्मी कुहू दी, जीजू कभी कभी सोचता हूँ यहीं बस जाऊं अपनो के बीच अपने घर में जहां जो चाहे करो कोई बंधन नहीं बड़ा घर बड़ा आंगन सब है यहां योग्यता के हिसाब से काम बस नहीं बस मजबूरी में सब एडजेस्ट करो।"
"सही है भैया मैं भी कुछ ऐसा ही सोच रहा हूँ। मैने सुमि से बात की है। उसे भी मेरी बात बहुत पसन्द आई उसने तो मम्मी के साथ मिलकर बहुत सी प्लानिग भी करनी शुरू कर दी ये वायरस वाली प्रॉब्लम निपट जाए फिर हम यहीं शिफ्ट होने वाले हैं।"
" सही है भाई किराए के घर, सामान में सुख सुविधा है पर अपने घर, सामान में संतुष्टि"
लेकिन तुम करोगे क्या?
" हमने यहीं अपनी जमीन में ही फ़िटनेस सेंटर और बाकी जगह में ऑर्गेनिक फॉर्मिग की प्लानिग की है। सुमि ने वैसे भी एग्रीकल्चर ले कर पढ़ाई की है। और मम्मी को तो ऐसे भी गार्डनिंग का शौक शुरू से रहा है हम सब यह काम आराम से कर सकते हैं। और भी कुछ कुछ किया जा सकता है। पापा मम्मी की हेल्थ भी अच्छी रहेगी रुद्र को उसके बेस्ट फ्रेंड्स भी मिल जाएंगे और जरूरत पड़ी तो हम कहीं जॉब भी कर सकते हैं।"
भैया देखिए मैने आपको पूरा प्लान भेजा है देखकर बताइए कैसा है।"
मम्मी पापा मंद-मंद मुस्कुराते एक दूसरे को नम आखों से देख रहे थे। आखिर उनके बच्चे बिना किसी दबाव के खुशी- खुशी अपने घर हमेशा के लिए जो आ रहे थे।
इसके साथ ही हमारी कहानी समाप्त होती है। मेरी कहानी को आपलोगों ने अपना आशीर्वाद दिया इसके लिए सादर धन्यवाद।
आशा है इसीतरह आपलोगों का मार्गदर्शन और आशीर्वाद मिलता रहेगा
धन्यवाद
नीता झा
"कहानी का सुखद अंत ❣❣"नीता दीदी🙏🙏🌹🌹 एक सार्थक, अति सुंदर व सकारात्मक ब्लॉग के लिए आभार.🙏🙏
जवाब देंहटाएंलॉक डॉउन में लोग बहुत से आधारभूत व्यवसाय और कृषि की ओर आकर्षित हो रहे हैं। बहुत ही अच्छा संदेश था इस कहानी में... धन्यवाद
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