कब, क्यों, क्या ??? - नीता झा

कब तक बताऊं,
क्यों फिर बताऊं?
क्या क्या सहा जीवन मे
अश्रुधारा क्यों फूटी है,
मेरी सपनीली आंखों में?
सुख बताऊं, दुख या
बोलो कितने घाव दिखाऊँ?
तुम ही कहो...
कब तक दिखाऊँ,
क्यों फिर दिखाऊँ?
बढ़ रही तारीखें पर
 खड़ी दोराहे अब भी
तुम विमुख चल पड़े
नई डगर अब भी अकेले
तुम ही कहो.....
 कब तक पुकारूँ,
क्यों फिर पुकारूँ?
चल सकती हूं मैं भी,
दृढ़ संकल्पित भी हूं
तुम न ठहरो, न पलटो
 तुम तक पहुंच गई तो
तुम ही कहो....
मैं कब तक पीछे चलूं,
क्यों फिर पीछे चलूं?
चलो "हमसफ़र"चलें,
जब राहें एक और
मंज़िल भी एक फिर
तुम ही कहो.....
 कब तक अकेली,
क्यों फिरुं अकेली?
     नीता झा

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