कोरोना के दौर में - नीता झा
जीवन की हर परिस्थिति का हम सभी बड़ों पर अलग अलग प्रभाव पड़ता है। वैसे ही बच्चों पर भी हर परिस्थिति का काफी गहरा असर पड़ता है। कोरोना काल का भी बच्चों के मन मस्तिष्क में बड़ा गहरा असर पड़ा है। उनकी दिनचर्या भी पूरी तरह बदल गई है। आइये इस कविता के माध्यम से थोड़ी मुस्कुराहट लाएं।
कोरोना के दौर में..
विपदा पड़ी है भारी!!
दीदी टावर देखे छत पर..
भैया बोरियत की बीमारी!!
बच्चे पकड़े मोबाइल..
घर मे होते बवाल!!
जो मन आए कह दिए..
फिर चाहे जो हाल!!
पढ़ते पढ़ते देख रहे सब..
कार्टून, गेम तमाम!!
कोई आए अगर पास तो..
टीचर का रौब दिखाए!!
पढ़ लिख होते बोर बहुत..
रसोई में मूड बनाए!!
जैसे हो कोई बब्बर शेर..
ऐसे अकड़ दिखाए!!
अपने मन की कह मम्मी से..
नाश्ते गरम बनवाए!!
ठुमक चमक कर टीवी में..
अपनी ही चलाए!!
कोई डांटे जरा कभी..
पल्लू में झट छुप जाए!!
फिर धीरे से नजर बचा..
बहना को खुब चिढ़ाए!!
नीता झा
बहुत सुंदर कृति है आपकी । समय के अनुकूल वाह ।
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