जो आ जाते एक बार - नीता झा
मौसमो में फिर आती बहार
कूकती कोयलें चलती फिर
जेठ की दोपहरी ठंडी बयार
जो तुम आ जाते एक बार
निकाल संदूक से चुनर मैं
बांध पावों में सुर झनकार
राह रोकती सजन इस बार
जो तुम आ जाते एक बार
सजती कर सोलह सिंगार
नयनो में कजरा होता और
गले मोतियों का धवल हार
जो तुम आ जाते एक बार
लिख दिखाती पाती विरही
अपने सुने बुझे से मन की
रोती तड़पती मन की पाती
जो तुम आ जाते एक बार
नयनो में भरती छवि निराली
अपनी हंसती, झूमती, गाती
तुम संग नेह के पल जी लेती
जो तुम आ जाते एक बार
मिट जाती बाहों में तुम्हारी
तूम क्या कहते जाने की
तुमसे पहले विदा मैं होती
नीता झा
रायपुर
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