हिंदुस्तानी बिटिया - नीता झा
लाशों की लपटों से तब
कैसे बचे बोलो अस्मत
हिंदुस्तानी बिटिया की
जा बैठे राज तंत्र में और
नैतिकता के विधानों में
अनैतिक शाला चलती
उनके ऊंचे मकानों में
बोटियाँ जब बेची जाती
सरे आम बाजारों में
हां बोटियाँ ही कहाती
घर की लज्जा बाजारों में
जला,पहले ही ख़ाक हुआ
अब शेष शोले न चिंगारी हैं
बिकते बिकते हिंदुस्तान
राख ही शेष रह जाएगा
अग्निपरीक्षा, जौहर से बढ़
रेप वजह कलंकी हो गया
किसे क्या है?किसकी पड़ी
हर एक सौदे में लगा हुआ
हिंदुस्तान को छलते छलते
अपनी भी अस्मत बेच रहा
रेप से जलता हिंदुस्तान
लाचार दिखाई देता है
बुद्धिजीवी के माथे से निकल
ठहरा तिजोरी में जा बसता है
नीता झा
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