युद्ध, युद्ध और युद्ध - नीता झा
युद्ध का सीधा मतलब विरोध की पराकाष्ठा है। लेकिन कई परिस्थितियां अपनी अलग ही कहानी कहती हैं। इतिहास गवाह है ऐसे कई युद्धों का जिनके तह में प्रेम ही प्रेम था।। फिर ऐसा क्या होता है कि प्रेम को भी युद्ध, घृणा, अपमान इत्यादि से होकर गुजरना पड़ता है?
फिर अंततः घोर निराशा, दुख, पीड़ा के अवसादों की कसक जीवन की मिठास छीन लेती है। काश प्रेम में सिर्फ प्रेम होता, खुशी में सिर्फ खुशी होती फिर दुनियां कितनी सुंदर होती.....
युद्ध, युद्ध और युद्ध..
शांति के लिए युद्ध!!
ज़िन्दगी के लिए युद्ध,,
न्याय के लिए युद्ध,,
प्रेम के लिए भी युद्ध,,
क्या है इस कि थाह में??
ज़िद, अहंकार, प्रतिकार,,
नेकी में छिपा व्यभिचार..
या चमकीली पोषक में,,
ढंका छुपा गहरा संताप..
क्या इतना ज़रूरी है युद्ध??
क्या इतना मिला जुला है,,
युद्ध शांति का भीतरी रूप??
कौन किसे जी रहा और..
किसे क्या हम समझ रहे??
न्याय का पथ क्यों रक्तिम..
क्यों बेबस प्रेम भाव कहो??
धन्यवाद
नीता झा
कवि हृदय की झझकोरती वेदना🤔
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