महामारी और राजतिलक - नीता झा
टीवी पर बिहार की राजनीतिक और चुनाव को लेकर किसका होगा राजतिलक पर मीडिया वाले बकायदे दरबार लगाए बैठे थे बिना मेकअप, बिना मास्क और बिना ग्लब्स के सभी दरबारी हलचल मचाए हुए थे। सब चाक चौबंद जरा सी आहत हुई कि पूरे लावलश्कर के साथ कैमरा माइक लिए दौड़ने को तैयार गोया चुनाव नहीं खो, खो खेला जा रहा हो आपकी जानकारी के लिए बता दें खो, खो में एक ही पन्गती में पक्ष- विपक्ष दोनों बैठते हैं। अब आप कहेंगे ये कैसा विपक्ष हुआ?
यही तो है असली खेल....
दोनों पार्टी अगल - बगल मस्त, बोलते- बतियाते शादी - पार्टी की बातें करते लेकिन विपरीत दिशा में मूह किए यानी टीम १ दांए तो टीम २ बाएं बैठे....
एक खिलाड़ी गोल गोल चक्कर लगाता खो... कहकर जिसकी पीठ पर हाथ रखे वह उठकर दौड़ेगा और वो भागने वाले कि जगह पर बैठेगा अपने लिए खो.... के इन्तजाए में।
कभी आप हमारे यहां के इस खेल को देखेंगे तो टिकिट बटवारे से लेकर चुनाव जीतने के सारे गणित आसानी से समझ जाएंगे। रही बात चुनावी मुद्दों की, तो न जनता को वादों पर भरोसा, न कथनों पर उसे पता है। आज जो मिला वही भाग्य है।
हमारे यहां की यह भी बहुत बड़ी विडंबना है, कि जनता इतने झूठ सुन चुकी है कि उसे किसी की बात पर न भरोसा है न सरोकार....
कौन नेता आ रहा है?
क्या भाषण दे रहा है?
से कोई मतलब नहीं उसे पता है चाहे कितना भी जुझारू नेता हो करेगा वही जो उससे करवाया जाएगा हां ये मैटर करता है किसकी रैली में क्या बंट रहा है। वही शतप्रतिशत उसका है बाकी तो छलावा ही है।
खैर, ये हमेशा से था और लगता नहीं कभी कुछ बदलेगा लेकिन इस तरह के झूठ का दुष्परिणाम ये निकला की लोगों ने कोविड 19 नामक आफत को भी हल्के में ले लिया इस भीषण महामारी में भी राजतिलक करवा कर सरकार क्या साबित करना चाह रही है
बड़े से बड़े बुद्धिजीवी के पास भी कुछ ऐसे सवालों के जवाब नहीं हैं, तो मासूम जनता क्या जाने....
वह तो आज के कबूतर में भी खुशी है अब किस्मत पर छोड़ देता है कबूतर महामारी लाने वाला है या स्वास्थय उसे तो बस कबूतर से मतलब है।
इस महामारी काल मे हो रहे "महामारी और राजतिलक" रूपी चुनाव पर मेरी पीड़ा-
महामारी और राजतिलक
यहां टूट रही सांसें जनता की..
तुम राजतिलक की बात करो!!
हैं कतारबद्ध वोटर सारे और..
सोशल डिस्टेंस पर बात करो!!
है तैयारी सभी हमारी कह तुम..
अपना पल्ला चाहे जितना झाड़ो!!
इक दूजे से सटे, मिले गुथे से!!
हाथ मे पहने झिल्ली पतली..
तुम्हारे शुभचिंतक खड़े हुए हैं!!
भेंट तुम्हारी उपयोगी बहुत सोच..
घर ले जाने सहेज रहे हैं!!
कुछ जागरूक मास्क लगाए..
दोस्त के कांधे हाथ टिकाके!!
बड़े मजे से विश्लेषण करते..
अपनी बारी की राह तक रहे!!
इस बात से पुर्णतः अनजान..
जिसकी खातिर खड़े कतार!!
वो जरा नहीं इनके पालनहार..
रोग, व्याध और महामारी में!!
जिन्हें सिर्फ वोटों से सरोकार..
बहुत हुआ वोटों का व्यापार!!
शर्म करो कुछ तो सरकार..
शर्म करो कुछ तो सरकार!!
सभी से विनती है। अपना ध्यान स्वंय रखें दूसरों के राजतिलक पर खुद को महामारी की भेंट न चढ़ने दें।
नीता झा
बहुत सुन्दर सृजन.👌👌
जवाब देंहटाएंअति उत्कृष्ट सृजन आदरणीय लाजवाब पंक्तियों से सुसज्जित अनमोल अभिव्यक्ति।👌👌🌺🌺
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
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