चंदा तुम्हे क्या याद नहीं - नीता झा


 मेरी कविता " चंदा तुम्हे क्या याद नहीं में माता -पिता की व्यस्त जिंदगी में अकेलेपन की पीड़ा दर्शाती नन्हे बच्चे की व्यथा है.....
  अच्छे जीवन की चाह में, कदम चले शहरों की ओर,
   कहां पता था।
 बड़े शहर की
 उजली रातें 
खा लेती हैं
 मेरे प्यारे चाँद को......
    कुछ इन्ही भावनाओं को बच्चे के नजरिये से देखने का प्रयास किया है मैने अपनी कविता "चंदा तुम्हे क्या याद नहीं"

चंदा तुम्हे क्या याद नहीं..

घर आते थे प्रायः रोज तुम।।

नानी माँ की कहानी में..

दादी की मीठी लोरी में।।

बुआ के प्यारे निवाले में..

मेंरे बालसुलभ खेलों में।।

मास्टर जी की कक्षा में..

कौमुदी के अमृतपय में।।

क्या याद है मेरे गांव  में..

हमारे साथ ही चलते थे।।

सायकल, बस, कार संग..

नाना जी से मिलने आते।।

सारी रात संग रह फिर..

बड़े सवेरे अपने घर जाते।।

आओ यहां भी तारों संग ..

बड़े शहर के छोटे कमरे में।।

मम्मी पापा जाते काम पे..

घर मे अकेले छोड़ मुझे तो।।

डरा- डरा मैं रहता अकेला..

तुम्हे याद याद बहुत रोता हूं।।

पर चांद तुम्हे क्या याद नहीं..

घर आते थे प्रायः रोज तुम।।

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