इस दिवाली आई सोने की मिठाई - नीता झा


इस दिवाली आई...
टी वी में सोने की मिठाई!!
दुकानदार खुश था...
आशान्वित हो बता रहा था!!
हमारे पास किलो के भी हैं...
और कम बजट में भी है!!
कम बजट?
सोने की मिठाई ,
वो भी कम बजट?
तभी उसने बक्सा खोला...
खूबसूरत बक्से में चमचमाती!!
एक पीस मिठाई थी...
हमे मिठाई का भाव तो पता नही!!
जानके करना भी क्या है...
मन मे कई सवाल उठ रहे थे!!
होता है ऐसा...
जब कुछ करते न बने तो!!
हमारा दिमाग सवालों में उलझाता है....
हमे व्यस्त होने का आभास करता है!!
पूछ बैठा पहला सवाल यकायक....
हमारा मित्र,हमारा मूढ़ मगज़!!
 बताइये जब एक पीस मिठाई,
 इतने बड़े ,सजावटी बॉक्स में है....
 तो सस्ती कैसे हो सकती है?
 और यदि सस्ती है तो कैसे?
 परिवार के कम होते जेवर...
 हमारी नजरों में घूम रहे थे!!
 अपने आस पास मजबूरों के...
"सुमत के सिंगार और विपत के आहार"
के मायने बदलते जा रहे थे...
ये सोना कहाँ से आया होगा?
क्योंकि एकबार हमसे छुटा...
तो दोबारा नही आया लौट कर!!
तो क्या सेठ की तिजोरी से होता...
जा पहुंचा सफेदपोशों के पेट तक!!
            नीता झा
पिछले साल की दिवाली में सोने की मिठाई का टेलीविजन पर खूब प्रचार हुआ इसी पर मैने इस काव्य की रचना को थी।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

निपूर्ण योग संस्थान रायपुर छत्तीसगढ में योग दिवस - नीता झा

योग के लिए खुद को तैयार कैसे किया जाए - नीता झा

निपूर्ण योग केंद्र