करुणा - नीता झा


     
      पानी की हल्की बौछार शुरू हो गई थी। खिड़कियों से आती बौछारें केतकी को भिगो रही थीं हल्की हवा से भीगे पन्ने जो जहां- तहां उसके दामन से मानो चिपक से गए थे। 
      तरुण टेबल के दूसरे कोने में चुपचाप बैठा अतीत में पहुंच गया था जहां वो और केतकी ही थे और कोई नहीं उसे आज भी याद है कॉलेज का पहला दिन सालों से जिस दो चोटी वाली सिंपल सी पढ़न्तु केतकी को कभी ध्यान से नजर भर देखा तक नहीं था। आज वह पहली ही नजर में उसकी आँखों मे बस गई थी। सुनहरी किनारे वाले  दूधिया सफेद सलवार कुर्ती में अपनी गुलाबी रंगत से मेल खाता हल्के गुलाबी रंग का सुनहरी पतली किनार वाला दुपट्टा डाल रखा था। उसने गहरे भूरे, हल्के- हल्के घुंघराले,घुटनो तक लम्बे खूबसूरत बालों को केतकी ने बड़े सलीके से खोल रखा था। उस दिन मंझोले कद वाली गोरी चिट्टी केतकी किसी अप्सरा से कम नहीं लग रही थी। जी चाहता था सामने बैठकर एकटक उसे ही देखता रहे।
      तरुण ने भी आर्टस ग्रुप ही लिया जबकि उसने बारहवीं साइंस से किया था घर मे काफी हंगामा हुआ था। पापा ने तो कह ही दिया था -" पता नहीं तुम्हारे दिमाग मे क्या चल रहा है। लेकिन कान खोल कर सुन लो अगर कम नंबर आए तो बेटा सीधे दुकान सम्हालना " 
      दुकान मतलब बर्तन की दुकान जहां सालों से सेम पैटन पे बर्तन जमाए जाते हैं लोग खरीदते हैं फिर वैसा ही बर्तन तुरन्त रख दिया जाता है। कोई नया पन नहीं कोई क्रिएटिविटी नहीं वैसे आर्ट्स भी बर्तन दुकान से कम नहीं लग रहा था पर यहां केतकी का साथ था, धीरे धीरे बढ़ती नजदीकियां थीं। वह पूरी मेहनत से पढ़ाई करता पढ़ना उसका शौक था तो धीरे धीरे सारे सब्जेक्ट अच्छे लगने लगे।
     केतकी भी तरुण के साथ अच्छे दोस्त की तरह ही बर्ताव करती थी। दोनों की पसन्द भी बहुत कुछ एक सी ही थीं। दोनों की दोस्ती कब प्यार में बदल गई उसे पता नहीं चला हाँ केतकी गाहे ब गाहे उसके सामने अपनी पसंद जाहिर करती पर तरुण ने कभी इस ओर ध्यान नहीं दिया कहाँ केतकी सर्वगुणसम्पन्न करोड़पति घर की ओर कहाँ वह सामान्य सा लड़का दोनों की पसन्द एक सी थी, नम्बर एकसे आते थे, उनके सपने एक से थे लेकिन सारी समानता को विराम लगाता उनका आर्थिक असमानता का होना अनकहा, अव्यक्त रिश्ता।
      एकदिन केतकी ने कॉलेज के लंच टाइम पर कहा भी की उसकी शादी की बात चल रही है। 
      बढ़िया है तुम्हारी बात चल रही है मतलब कोई खास ही होगा कौन है वो खुशनसीब
      हैदराबाद में घर है पर वो अमेरिका में डॉक्टर है 
      वाह बढ़िया.....
      मन मे अजीब सी कसक हुई पर उसने प्रत्यक्ष के उत्साहित हो जवाब दिया।
      सभी लोग उसे बधाई देने लगे सबकी बातों में विराम लगाते हुए उसने सीधे- सीधे वरुण की आखों में आंखे डालते हुए कहा था -"बधाई मत दो मैने मना कर दिया है।"
 रचना ने आश्चर्य से पूछा- क्यों ?
 लड़का देखने मे अच्छा नहीं है या बिगड़ा नवाब है?
 नहीं यार ऐसा कुछ नहीं.....
 बस मना कर दिया कहते कहते उसने धीरे से तरुण की तरफ देखा।
 तरुण चुपचाप वहां से उठ गया था वह सब समझता था पर उसपर कई जिम्मेदारियां भी थीं। चार बड़ी बहनों का इकलौता छोटा भाई। सबकुछ था पर आज़ादी नहीं घर परिवार दुकान और बहुत सी परम्पराएं.....
 सभी को उसके कॉलेज पास होकर दुकान सम्हालने की जल्दी थी फिर वह जानता था दुकान सम्हालते ही शादी करवादी जाएगी यही तो तरुण नहीं चाहता था। 
  वह प्रायः सोचता काश कोई चमत्कार हो जाए और केतकी उसके जीवन मे आ जाए पर यह सम्भव ही नहीं था खैर.....
  समय बीतता गया कॉलेज भी कम्पलीट करके सब अपने अपने जीवन मे रच बस गए फिर केतकी और रमन की मुलाकात ही नहीं हुई। एक दो बार फोन लगाया पर कभी कोई और उठता तो बात करना अजीब लगता था धीरे धीरे उसने कॉल करना ही बंद कर दिया। तरुण आगे और पढ़ना चाहता था बड़े जीजाजी से मन की बात कही उन्होंने पापा को मना लिया और वह आगे की पढ़ाई के लिए दिल्ली चला गया। कभी कभार कालेज के दोस्तों से बातें होती तो सबकी खैरियत पता चलती थी। रचना ने ही बताया था केतकी ने एम ए करने के बाद आगे पढ़ाई नहीं की उसने एंटीक चीजों की शॉप खोली है काफी अच्छे कलेक्शन हैं साथ ही सोशलवर्क भी करती है। वह मन ही मन मुस्कुराया यही तो उन दोनों का सपना था। लोगों की सेवा करना और  एंटीक चीजों के कलेक्शन का शौक था। 
  रचना की शादी हो गई नम्बर बदल गया और बात बन्द हो गई....
   कई बार मन हुआ केतकी को सीधे फोन लगाए पर मन मे झिझक थी हिम्मत ही नहीं कर पाया घर मे सबलोग शादी के लिए दबाव बनाने लगे लेकिन केतकी की जगह किसीको देने का विचार ही नहीं आया देखते देखते आठ साल गुजर गए पता ही नहीं चल।
  तरुण ने उसे मन मंदिर में तो बिठा रखा था लेकिन क्या केतकी भी उसे चाहती होगी ?
  वह उसे याद भी है या नहीं ?
  कुछ नहीं पता था एकतरफा प्यार ने उसे बहुत उलझा रखा था। लेकिन मन मे एक आस थी कि शायद केतकी भी उसी की उसका इंतजार कर रही होगी फिर अगले ही पल खुद पर हंसी आती जब पढ़ाई के समय उसके लिए एकसे एक रिश्ते आ रहे थे तो अब तक कहाँ वह उसका इंतजार करेगी और क्यों?
     कभी उसे बताया भी तो नहीं 
     एक दिन ग्यारह बजे के लगभग घर से फोन आया दादाजी की तबियत बहुत खराब है! जल्दी मिलने बुलाया है। अपनी तमाम यादों के साथ बोझिल मन से वो घर पहुंचा दादाजी काफी कमजोर लग रहे थे। तरुण को देखकर पथराई आँखें भी तरल हो गईं। कुछ कहना चाह रहे थे पर कह नहीं पा रहे थे। बिना कुछ कहे ही अंतिम यात्रा पर निकल पड़े। 
    
  उनके अंतिम दर्शन को बहुत से लोग आए थे। उन सबों के बीच वही जाना पहचाना चेहरा दिखा केतकी का जैसे ही दोनो की नजरें मिलीं उसने दूसरी तरफ मुह कर लिया और जल्दी ही चली गई सारा कार्यक्रम सम्पन्न हो गया वो नहीं आई। तरुण के मन मे बड़ी हलचल होने लगी.....
   एक तो वह इतने दिन मिली नहीं, जब आई बात करने की हालत ही नही थी। क्या करे... क्या उसके घर जाए या नहीं? इन्ही उलझनों में था कि एक दिन सारे पुराने दोस्त आए कुछ औपचारिक बातों के बाद एक दूसरे के विषय मे बातें होने लगीं तपन ने बताया यार केतकी ने तो बहुत बढ़िया काम किया है। उसने " करुणा" नाम से एक संस्था खोली है जहां ऐसे लोगों को करियर के लिए पूरी मदद मिलती है जी सुविधाओं से वंचित होनहार हों जरूरतमंद लड़के लड़कियों के स्किल डेबलपमेंट के लिए बहुत सही काम कर रही है भाई। 
   कहाँ रहती है?
   वहीं और कहां....अपने महल में....इतना बड़ा बंगलो छोड़ कर कहाँ जाएगी। 
   तो क्या उसने शादी नहीं की?
   मेरी जानकारी में तो नहीं की है!
 मन बड़ा हल्का हो गया रात में खाना खाने के बाद आज फिर तरुण बड़े जीजाजी के पास बैठ गया।
 क्या बात है साले साहब लगता है कुछ कहना है?
 जी....
 क्या?
 चलिए टहल कर आते हैं।
 ठीक है चलो ऐसे भी ससुराल का खाना आसानी से हज़म कहाँ होता है  कहकर वे हंसते हुए उठे और बाहर चल पड़े 
 थोड़ी देर चुपचाप चलते रहे समझ नहीं आ रहा था बात कहां से शुरू करे 
 जीजाजी ने चुप्पी तोड़ी कौन है तुम्हारी दुविधा का कारण?
 वह चौक गया
 जी...
 सब समझता हूं यार कहाँ की है दिल्ली की या यहां की?
 जी...... यहीं की है।
 तो अब आगे सब बताओ मुझसे क्या चाहते हो....
 हम मिडिल से कॉलेज साथ पढ़े और मुझे वो शुरू से पसन्द है लेकिन पता नहीं वो मुझे पसन्द करती भी है या नहीं....
 क्या मैं उसे जनता हूँ?
 शायद नहीं..... लेकिन उठावने के दिन वो आई थी...... 
 इतनी भीड़ में कौन थी कैसे जान सकता हूँ किसके साथ आई थी?
 मुझे नहीं पता लेकिन वो हॉल की दांईं तरफ खिड़की के पास बैठी थी
 कौन केतकी जी?
 जी आप जानते हैं उसे?
 उन्हें कौन नहीं जानता यार उन्होंने इतनी कम उम्र में बहुत नेक काम किए हैं दादाजी भी तो उनकी संस्था के फाइंडर मेम्बर थे। 
ओह.....
तरुण के आश्चर्य का ठिकाना नहीं था।
जब उसने बताया कि वह बचपन से केतकी को चाहता है पर उसकी शानोशौकत देख कर कभी कुछ बोल नहीं पाया जीजाजी जोर से हंस पड़े....
 तरुण याद है पिछले महीने माजी ने एक फोटो भेजी थी ये इसी केतकी की फोटो थी। जिसे तुमने बिना देखे रिजेक्ट कर दिया तबसे केतकी ने ऑफिस आना बंद कर दिया उसने कॉल किया था कि उसकी तबियत खराब है तो वह फिलहाल नहीं आएगी।
  मेरेलिए रिश्ता आया तो मैंने बाकियों की तरह उसे भी नहीं देखा बहुत बड़ी गलती हो गई शायद इसी वजह से वह आई पर बिना मीले चली गई।
  मन ग्लानि और दुख से भर गया घर आकर मम्मी और दीदी को सारी बात बताई हुए उसका गला बार- बार भर जाता खैर.....
  सारी रात आंखों में ही कट गई सुबह चाय पीते हुए पापा ने कहा -"तरुण कल तुम्हारी मम्मी ने मुझे सब बताया....वो काफी परेशान हैं! पर मैं जानता हूँ, सब ठीक होगा हिम्मत करो....यार सब अच्छा होगा...
   मम्मी की तरफ देखकर बोले -"सुनो... प्रसाद भिजवाना था ना....पाठक जी के यहां का पैकेट तरुण को दे दो,वह खुद दे आएगा..... उसदिन वो केतकी की तबियत ठीक नहीं है कहकर जल्दी ही चले गए थे। 
  " जाओ तो उसकी तबियत भी पूछ लेना... चाहो तो मिल लो.... बाकी फैसला तुम्हारा है। कहकर  बाहर निकल गए।"
  उसने बाहर से कई बार केतकी का घर देखा था पर कभी अंदर नहीं गया था। घर अंदर से भी बड़े ही करीने से सजा हुआ था। कॉलबेल बजाते ही केतकी के छोटे भाई तनय ने गेट खोला एक ही स्कूल में पढ़ते थे, तो देखते ही दोनों ने एक दूसरे को पहचान लिया। थोड़ी बहुत औपचारिक बातों के बाद घर के बाकी लोगों से भी मुलाकात हो गई पर केतकी नहीं दिखी उसकी दुविधा देखकर तनय ने कहा-" भैया क्या आप दीदी से मिलना चाहेंगे?"
  ह..हां...
  वह हड़बड़ा गया फिर तनय उठते हुए बोला चलिए उनके कमरे में चलते हैं।
  वह तनय के पीछे पीछे चलने लगा तनय ने हल्की सी आवाज़ दी दीदी देखो कौन आया है आपसे मिलने....
  पर कोई जवाब नहीं आया तो तरुण की तरफ देखकर धीरे से बोला शायद दवा खा कर सोई हैं...
  वह ठिठक गया
  अरे भैया आइये ना लगभग खींचता हुआ वह तरुण को अंदर ले आया पलंग पर उसकी सुनहरे बालों वाली परी बेसुध सोई थी। पहले से दुबली लग रही थी
  उसे इसतरह देखेगा सोचा नहीं था। 
  क्या हुआ है केतकी को?
  क्या आपको सच मे नहीं पता ? 
  इसबार उसका लहजा थोड़ा तल्ख लगा
  तुम क्या कह रहे हो मेरी समझ मे कुछ नहीं आ रहा है
  भैया क्या आपको सही में पता नहीं था। कि दीदी आपसे कितना प्यार करती हैं। मैं आपलोगों से बहुत छोटा हूं, पर मैं समझ गया था।
   पर आप नहीं समझ सके उनके प्यार को।
  आपके दिल्ली जाने के बाद दीदी इसी उम्मीद में जी रही थीं कि आप पढ़ाई पूरी करके वापस आएंगे तब तक उन्होंने यहां आप दोनों के सपनो का जहां बसा लिया था। उन्होंने कह रखा था। कुछ करना चाहती हैं। फिर शादी करेंगी। धीरे धीरे हम सब को उनके प्यार की खबर लग गई थी तभी तो आपके दादाजी ने उनका हर काम मे हमेशा साथ दिया उन्होंने ही फोटो भी भिजवाई पर आपके मना करने पर उन्हें तो धक्का लगा ही दीदी भी डिप्रेशन में चली गईं।
  "ओह ये मैने क्या कर दिया "कहता तरुण वहीं बैठ गया टेबल में बहुत से पन्ने रखे हुए थे। तनय ने उनकी तरफ इशारा कर कहा ये आपके लिए है पढ़ लीजिए, मैं अभी आया कहकर बाहर निकल गया।
  जैसे जैसे वह उन पन्नो को पढ़ता जा रहा था उसकी आँखों से आंसू झरते जाते कितना अटूट प्यार था केतकी के मन मे तरुण के लिए बचपन के प्यार का ऐसा अंजाम किसी को भी तोड़ के रख दे कितना दर्द भरा अहसास था एक एक शब्द दर्द में डूबा वह अलमारी की तरफ बढ़ा वहां बहुत सी डायरियां रखी थीं। कइयों के पन्ने फटे हुए किसी की जिल्द निकली हुई तो कोई   पेन से बुरी तरह काटी हुई। ढेर की शक्ल में जज़्बात थे और बेसुघ उसका प्यार पड़ा था। इतने में तेज हवा ने सारा कुछ उलट-पलट के रख दिया था।
    चेहरे पर पानी के छींटे पड़े तो केतकी की तन्द्रा हल्की सी टूटी उसने आसपास नजर दौड़ाई सामने तरुण को देखकर अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ वह आँखे मलती उठ बैठी तबतक तरुण भी उसके पास आ गया दोनों एक दूसरे से लिपट काफी देर तक रोते रहे। निःशब्द, अनबोले।
               नीता झा

टिप्पणियाँ

  1. ऐसी शानदार कहानी पढ़ता गया पढ़ता गया अचानक ध्यान भंग हो गया,अरे कहानी तो खत्म नहीं हुई पर लेखनी रूक गई ,, और लिखो नीता

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