मैं बस्तर की कुंद फूल सखे - नीता झा
बस्तर के जंगलों में पाया जाने वाला बड़ा ही सुगन्धित फूल होता है जो सफेद रंग का होता है। अपनी सादगी से परिपूर्ण होता है जिसपर मैने अपनी कविता रची है " मैं बस्तर की कुंद फूल सखे मुझमें गुलाब की आस न कर"
मैं बस्तर की कुंद फूल सखे...
मुझमे गुलाब की आस न कर।।
मैं धवल - धवल सी यामिनी...
मुझमे रंगों की आस न कर।।
मुझमें चंचलता,अल्हड़पन...
उन्मुक्त पवनमें डोल सकूंगी।।
हरियाली को देख सजन मैं...
छंद प्रेम के गढ़ पाऊंगी पर।।
मैं बस्तर की कुंद फूल सखे...
मुझमें गुलाब की आस न कर।।
वासन्तिक मौसम में मचल फिर...
श्रंगारिका सी दमक उठूंगी।।
ऊंची ऊंची पर्वतश्रंखलाओं पे...
गीत अटल भी रच जाऊंगी।।
कल - कल करते झरने संग...
प्रेम गीत मैं बन जाऊंगी पर।।
मैं बस्तर की कुंद फूल सखे...
मुझमें गुलाब की आस न कर।।
खेत - खलिहान को जो स्वर दे...
वो लोक गीत मैं बन जाऊंगी।।
मन्दिर में बजते मृदंग संग गाते...
भक्ति गीत भी बन जाऊंगी पर।।
मैं बस्तर की कुंद फूल सजन...
मुझमें गुलाब की आस न कर।।
हूं भारत की साधारण सी नार...
छद्म रूप कभी ना धर पाऊंगी।।
पर्वत की छाती से उपजा झरना...
उसकी मूक मित्र हूं मैं सखे पर।।
मैं बस्तर की कुंद फूल सखे...
मुझमे गुलाब की आस न कर।।
तुम उजले शहर के उजले शहरी...
मैं मद्धम रोशन जुगनू सी नार।।
तुम सारी ऋतुएं लिए हो फिरते...
मैं मौसमो की आई बहार सखे।।
जो सावन के रिमझिम में हर्षाती...
और जेठ की तपिश में मुरझाती हूं।।
मैं बस्तर की कुंद फूल सखे...
मुझमें गुलाब की आस न कर।।
मैं नाजुक पौध की कोमल टहनी...
तुम आधुनिक वट वृक्ष विशाल।।
कैसे तुम संग मैं निभ पाऊंगी...
मैं वनों, गांवों में पुष्पित पल्लवित।।
कोमल, निर्बल लतिका सी नार...
तुम वैभव सम्पन्न राज पुरुष पर।।
मैं बस्तर की कुंद फूल सखे...
मुझमे गुलाब की आस न कर।।
मैं अनगढ़ प्रस्तर प्रतिमा सखे...
तुम रत्नजड़ित मूर्ति विशाल।।
मैं लाजवंती अपने मे सिमटी...
न कर मुझसे आस अभद्र सी।।
👌👌👌👌Tareef ke liye shabad nhi mil rhe..👌👌🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद
जवाब देंहटाएं