मैं भारत की स्त्री - नीता झा।

मैं अंदर ही अंदर
बढ़ रही हूं
कभी सँवरती
कभी बिखरती हूँ
मैं भारत की स्त्री
खुद ही खुद को
गढ़ रही हूं...

मैं अंदर ही अंदर
बढ़ रही हूं....
घर तो कभी  खुद को
सलीके से सँवारती
कभी नया,अलबेला
भी गढ़ रही हूं
मैं अंदर ही अंदर
बढ़ रही हूं....

भूली नही त्रासदी
सदियों पुरानी भी
इसलिए  बच्चों को
देशभक्ति कहानियों
 से सीखा रही हूं
मैं अंदर ही अंदर
बढ़ रही हूं....

गर्भस्थ या गोद मे,
 देश भक्ति के काम लगे
मेरी हरेक सन्तान हमेशा
मुझसे ही तो बल पाती है
मैं जो भी उन्हें सिखाऊँ
मनोयोग से सीखती है...

इसी आशा के चलते
अच्छाई के उत्तुंग शिखर 
अपनी आमद का 
परचम लहरा रही हूं....
मैं आजाद देश की आजाद स्त्री
आजादी के सही मायने
दुनिया को बता रही हूं....

मैं भारत की स्त्री
अंदर ही अंदर 
बढ़ रही हूं.....
कभी निखरती
कभी बिखरती
खुद से खुद को 
गढ़ रही हूं.....
       नीता झा

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